1-सुनीता काम्बोज
काँटेदार झाड़ियाँ फैली, बहुत घना जग कानन है
तमस भरा है रोम- रोम में, ऐसा मन का आँगन है
ईर्ष्या के पत्ते डाली हैं,अहंकार के तरुवर हैं
काई द्वेष की जमी है इसमें, बगुलों से भरे सरोवर हैं
काँटे झूमते निंदा रूपी,घास फूस है जड़ता का
सर्प रेंगते बिच्छू खेलें , बंजर सारे गिरवर हैं
जहरीली बेले फैली हैं, न तुलसी न चंदन है
तमस--
लिप्सा के हैं मोर नाचते, तृष्णा के खग बोल
रहे
करुणा, प्रेम दया, ममता भी , सहमे- सहमे डोल रहे
मुक्त करूँ कैसे मैं इनको, नवयुग का निर्माण
करूँ
छल की हाला को घन काले ,सच्चाई में घोल रहे
मद के पतझड़ की छाया है ,नहीं वसन्त ,न सावन है
तमस----
जल जाएँगे इक पल में ही, सच की आग लगा देना
फूल खिलाकर करुणा के तुम, गुलशन यह महका देना
पुष्प प्रेम के मुरझाए हैं ,फिर से उन्हें
खिलाकर तुम
नेह-नीर से इन्हें सींचकर, उजियारा फैला देना
क्यों बिन कारण ये उलझन है ,क्यों संशय की अनबन है
तमस----
-0-
2-परमजीत कौर 'रीत’
रोज उम्मीदों की चादर -सी बिछाती है निशा
सबको सपनों के लिये जीना सिखाती है निशा ।
सबको सपनों के लिये जीना सिखाती है निशा ।
चाँद आए ,या न आए, है ये उसकी मरजी।
अर्घ्य देने का धरम अपना , निभाती है निशा ।
अर्घ्य देने का धरम अपना , निभाती है निशा ।
घोर अँधियारे से तन्हा जूझकर भी ,हर सुबह
सोने जैसा नित नया सूरज , उगाती है निशा।
सोने जैसा नित नया सूरज , उगाती है निशा।
रोज मरकर, रोज जीना किसको कहते हैं ,ये
हर प्रभाती को गले मिल मिल बताती है निशा।
हर प्रभाती को गले मिल मिल बताती है निशा।
छोटी छोटी खुशियों से, जीवन सजा लेना 'रीत'
छोटे -छोटे तारों से ज्यों नभ सजाती है' निशा।
-0-श्री गंगानगर(राजस्थान)
छोटे -छोटे तारों से ज्यों नभ सजाती है' निशा।
-0-श्री गंगानगर(राजस्थान)
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बहुत सुंदर रचनाएँ सुनीताजी,परमजीतजी।बधाई
ReplyDeleteसादर धन्यवाद सुदर्शना जी ..सादर नमन
Deleteसुनीता जी,परमजीत जी बेहतरीन सृजन,सुंदर भावाभिव्यक्ति...
ReplyDeleteपूर्णिमा जी हार्दिक आभार
Deleteसुनीता जी, परमजीत जी बहुत सुंदर सृजन, बधाई।
ReplyDeleteअनीता जी सादर धन्यवाद
Deleteसुनीता जी आज के जन मानस का चित्रण बहुत सुन्दर तारीके से कविता में ढाला आपने ।बड़िया लगा ।
ReplyDeleteपरमजीत जी आप की निशा पर कविता भी भाव पूर्ण है । छोटी छोटी खुशियों से जीवन सजा लेना ...छोटे छोटे तारों से ज्यों नभसजाती निशा । सही कहा हम बड़ी खुशियों की चाहत में हमें छोटी खुशियाँ जो अनचाहे मिल जाती हैं उन को देख ही नहीं पाते । बधाई आप दोनों को ।
कमला जी बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteसुनीता जी प्रेम का संदेश देती सुन्दर कविता ।
ReplyDeleteख़ुशी का संदेश देती गजल ,
आप दोनों को बधाई
शुक्रिया मंजू जी
DeleteSunita Ji aur Paramjit Ji ,
ReplyDeleteaap ki rachnaaon men jeewan ka itna sunder arthpoorn chittran hai,ki baar -baar pathte hii jaayey fir bhii mn nhin thakta. Kahan sey ley aati ho ye bhaav. Shubhkaamnaaon sahit. Shiam Tripathi Hindi Chetna
सादर धन्यवाद आदरणीय
DeleteSunita ji, paramjit ji hardik badhayi, sundar rachnayen.
ReplyDeleteसुनीता जी व परमजीत जी आपकी भावनात्मक अभिव्यक्तियों के लिए हार्दिक बधाई !
Deleteसादर धन्यवाद प्रेरणा जी
Deleteछोटे -छोटे तारों से ज्यों नभ सजाती है' निशा।
ReplyDeleteपरमजीत जी बहुत सुंदर रचना
सुनीता जी सार्थक सृजन के लिए बधाई ।
ReplyDeleteपुष्प प्रेम के मुरझाए हैं ,फिर से उन्हें खिलाकर तुम
नेह-नीर से इन्हें खींचकर, उजियारा फैला देना
क्यों बिन कारण ये उलझन है ,क्यों संशय की अनबन है।
परमजीत जी सुन्दर सृजन के लिए बधाई ।
छोटी छोटी खुशियों से, जीवन सजा लेना 'रीत'
छोटे -छोटे तारों से ज्यों नभ सजाती है' निशा।
सस्नेह विभा रश्मि
सुनीता जी और परमजीत जी मानव मन के अनेक भावों से और जीवन के अर्थों से पूर्ण कवितायें हैं हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteसुंदर, भावपूर्ण कविताएँ !
ReplyDeleteहार्दिक बधाई सुनीता जी व परमजीत जी !!!
~सादर
अनिता ललित
Sunita ji, paramjit ji sundar rachnayen hain aap donon rachnakaaron kee
ReplyDeletehardik badhayi !!!
जल जाएँगे इक पल में ही, सच की आग लगा देना
ReplyDeleteफूल खिलाकर करुणा के तुम, गुलशन यह महका देना
पुष्प प्रेम के मुरझाए हैं ,फिर से उन्हें खिलाकर तुम
नेह-नीर से इन्हें सींचकर, उजियारा फैला देना
क्यों बिन कारण ये उलझन है ,क्यों संशय की अनबन है...बहुत ही सुन्दर ...बधाई स्वीकारें सुनीता जी !
छोटी -छोटी खुशियों से ..बहुत ही प्यारे भाव लिए सुन्दर कविता 'रीत' जी ..बहुत बधाई !!
सुन्दर रचनाओं के लिए बहुत बधाई...|
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