कृष्णा वर्मा
तुम्हें नहीं देखा कभी
घर में कुछ छूटे हुए तुम्हारे चिह्नों ने
मुझे तुमसे परिचित करवाया
जिन्हें माँ ने यादों की तह संग
एक संदूक में रख छोड़ा था
तुम्हारे कुरते के सोने के बटन
जिनकी चमक मुझे जब-तब
कितना लुभाती रही होगी
और तुम्हारी गोदी में बैठ मुझे
खिलौने का- सा आनन्द देते रहे होंगे
तुम्हारा धूप का काला
जिसे कई बार मेरे नन्हें हाथों ने
उतार लेने की ज़िद्द की होगी
तुम्हारी हाथ- घडी, पेन,
कमीज़ों के कफ लिंक्स जिन पर लिखा
मेड इन इंगलैंड स्पष्ट करता है
तुम्हारे शौकीन मिज़ाज़ को
माँ और तुम्हारे पवित्र रिश्ते की निशानी
वह शादी की अँगूठी आज भी
ज्यों की त्यों सहेज रखी है
तुम्हारे कपड़े जूते शायद किसी ज़रूरतमंद
पिता की ज़रूरत को पूरा करने के लिए
दान के रूप में दे दिए गए होंगे
सिल्क जौरजेट की सुन्दर रंग-बिरंगी साड़ियाँ
जो तुम कभी प्यार से माँ के लिए लाए होगे
उदासी ओढ़े पड़ी हैं संदूक में
माँ ने तुम्हारी गुमसुम यादें
उनमें लपेट आज तक सन्दूक में
कपड़ों की तहों के सबसे नीचे दबा कर रखी हुई हैं;
क्योंकि उन रंगों को पहनने का हक
जो तुम माँ से छीन ले गए हो अपने साथ
और दे गए श्वेत शांत दूधिया रंग ओढ़ने को
जो बेरंग जीवन के लम्बे रास्तों को
अकेले ही तय करने का अहसास दिलाता रहे
तुम्हारी प्रीत की दो निशानियाँ हैं उसके पास
जिनमें तुम्हारे ढब और शील झलकते हैं
अदृश्य से आज भी जीवित हो तुम
माँ के इर्द-गिर्द।
-0-
बहुत ही भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteमधुर यादेों के साथ दर्द समेटती अनुपम रचना के लिए कृष्णा जी को दिल से बधाई !
आज भी जीवित हो तुम माँ के इर्द गिर्द ... यादों के ताने बानों से बुनी बहुत भावपूर्ण, सुंदर कविता सच्चे अर्थों में पिता को भावभीनी श्रद्धांजलि
ReplyDeleteसभी को पिता दिवस की अग्रिम शुभकामनाएँ
भावभीनी प्रस्तुति के लिए भावभीनी श्रद्धांजलि | पिता याद आ गए |
ReplyDeleteभावपूर्ण श्रधांजलि
ReplyDeleteमेरी रचना को सहज साहित्य में सांझा करने के लिए आ० काम्बोज भाई जी का हृदय से आभार।
ReplyDeleteआप सभी मित्रों का रचना पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद।
पिता दिवस पर इतनी भाव पूर्ण रचना मन में पिता की यादों को ताजा कर गई ।बेटी का पिता के प्रति अगाध प्रेम पिता से दूर होकर भी स्मृतियों में हमेशा साथ होता है ।इन भावपूर्ण यादों से बढकर पिता को और श्रदांजलि क्याहोगी ।
ReplyDeleteकृष्णा जी यह लाइन तो सारी कथा कह गई -अदृश्य से आज भी तुम जीवित हो/ माँ के इर्द गिर्द । बधाई इतनी सुन्दर रचना के लिये आप को ।
कृ ष्णा जी पिता पर लिखी हुई अनेक मीठी यादें संजोय भाव पूर्ण , पिता की याद दिलाती रचना है ।हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteबहुत ही कोमल, प्यारी दिल को नर्मी से छू जाने वाली रचना। कृष्णा जी आपको बधाई।
ReplyDeleteबहुत ही कोमल, प्यारी दिल को नर्मी से छू जाने वाली रचना। कृष्णा जी आपको बधाई।
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति ! कृष्णा जी बधाई !
ReplyDeleteBhavpurn abhivaykti meri shubhkamnayen...
ReplyDeleteRachna bahut hi marmik rahi, man ke bhaavo ko shabdo mei pirona koi aapse seekhe...����
ReplyDeleteअदृश्य से आज भी जीवित हो तुम
ReplyDeleteमाँ के इर्द-गिर्द।
कितना कुछ कह गई ये पंक्तियाँ...| इस भावपूर्ण रचना के लिए मेरी हार्दिक बधाई...|