1-एक
जोड़ी पैर
मंजूषा 'मन'
जीवन भर
देखे उसने
सिर्फ एक जोड़ी पैर
और सुनी
एक रौबदार आवाज-
"चलो"
और वो चलती रही
एक जोड़ी पैर के पीछे
करती भी क्या
बचपन से यही सीखा
सिर नीचे रखो
नज़र नीचे रखो
देख भी क्या पाती
नीची गर्दन से
नीची नज़र से
उसे तो दिखे
सिर्फ एक जोड़ी पैर
जो दिशा दिखाते रहे
और धीरे धीरे
वो औरत से
भेड़ में बदल गई
जब भी सुनती
"चलो"
तो बस चल देती
उन दो पैरो के पीछे
बस यही जानती है वो
ये एक जोड़ी पैर
और ये आवाज है
उस पुरुष के
जो मालिक है
मेरे जीवन का।
-0-
2-रुदाली-मंजूषा 'मन'
मन के भीतर एक रुदाली
हर पल ही रोया करती है
मन की उर्वर धरती पर वो
आँसू ही बोया करती है।
खोया जो कब उसका दुख है
कुछ पाने की चाह नहीं है,
न कोई मंजिल है उसकी
कोई उसकी राह नहीं है।
जाने किन जन्मों की पीड़ा
जन्मों से ढोया करती है।
मन के भीतर एक रुदाली…
जीवन के सारे सुख इसने
पाये पाकर ही खोए है,
देखे जो भी इसकी किस्मत
तो अनजाने भी रोए हैं।
आँसू ही इसकी पूँजी हैं
उनको ही खोया करती है।
मन के भीतर एक रुदाली
हर पल ही रोया करती है।
-0-
वाह मंजूषा जी उत्तम सृजन। बधाई।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 20 अप्रैल 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह मंजूषा जी बहुत सुन्दर लिखा है।मन के भीतर एक रुदाली में व्यथा का वृतांत और एक जोड़ी पैर दोनों ही भाव पूर्ण हैं रचनाएं हैं ।हार्दिक बधाई आपको ।
ReplyDeleteव्यथित कर देने वाली आपकी रचनाएं हृदय को छू जाती हैं। उसकी कहानी आपने कह दी जो शायद ये जानती भी नहीं कि अपनी व्यथा कैसे कहे। शब्दों की सुंदर व्यवस्था।
ReplyDeleteऊफ मंजूषा कितनी भावपूर्ण रचनाएं । हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteमंजूषा दोनो ही रचनायें बहुत सुन्दर है खासतौर पर एक जोड़ी पैर तो बस लाजवाब ही है
ReplyDeleteमंजूषा जी बढिया रचनाएं। एक जोड़ी पांव तो विशेष रूप से बहुत उम्दा।
ReplyDeleteबहुत मार्मिक
ReplyDeleteबधाई
बहुत मार्मिक
ReplyDeleteबधाई
एक जोड़ी पैर अक्षरसा सत्य मार्मिक कहानी ।केवल एक उसकी नहीं । न जाने कितनों की ही है जो खामोशी से जीये जा रही है इसी तरह । और रुदाली और भी भावपूर्ण और मार्मिक कविता है -जाने किन जन्मों की पीड़ा जन्मों से ढोया करती है।
ReplyDeleteमन के भीतर एक रुदाली रोया करती है । बधाई मंजूषा जी ।
सदियों से और आज भी स्त्री जाति की यही मनोव्यथा है मन को चुने वाली उत्कृष्ट रचना दोनों .
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा रचनॉए
ReplyDeletekatu saty bahut khoob likha hai aapne badhai
ReplyDeleterachana
मन को छूती भावपूर्ण सुंदर कविताएँ मँजूषाजी । बधाई।
ReplyDeleteदोनों कविताएँ औरत जाति के जीवन की सच्चाई उजागर करती बहुत ही भावपूर्ण हैं,मनीषा जी बधाई |
ReplyDeleteपुष्पा मेहरा
स्त्री जीवन के अँधियारे पहलू को उजागर करती रचनाएँ ..बधाई मंजूषा 'मन' जी !!
ReplyDeleteभावपूर्ण सुंदर कविताएँ मँजूषाजी ।हार्दिक बधाई आपको ।
ReplyDeleteएक जोड़ी पैर...sach men bahut marmik rachna hai meri hardik badhai....
ReplyDeleteआँसू ही इसकी पूँजी हैं
उनको ही खोया करती है।
मन के भीतर एक रुदाली
हर पल ही रोया करती है। rudali bhi bahut achhi rachna hai...bahut bahut badhai...
मञ्जूषा जी...इतनी मार्मिक रचनाएँ...| `एक जोड़ी पैर' पढ़ते हुए तो मानो आँख भर आई...|
ReplyDeleteइतनी उत्कृष्ट रचनाओं के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें...|