1-रिश्तों के जाल
- सुदर्शन रत्नाकर
मैं फँसी हूँ
रिश्तों के जाल में
जिसके धागों को
मैंने स्वयं बाँधा है
अपने रक्त के रेशों से
जिन्हें काट भी नहीं सकती
बाँट भी नहीं सकती ।
निकलने की दूर दूर तक कोई थाह नहीं
जितनी कोशिश करती हूँ
उतना और उलझती हूँ ।
यह उलझन मन की है
जो स्वयं ही बँधता है
और स्वयं ही तड़पता है
रिश्तों के जाल में ।
निकलूँ भी तो कैसे
मृगमरीचका की तरह
ये आगे लिए जाते हैं ।
टूटते भी नहीं
छूटते भी नहीं
ये तो गहरे
और गहरे
होते जाते हैं ।
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2-जीवन जंग(कविता)
- सुनीता शर्मा ,गाजियाबाद
दर्द के मंजर देखे ।
आंसू के समुन्द्र
देखे ।
जीने की तमन्ना लिए
,
मौत के हमसफ़र देखे ।
मन की सिलवटों में ,
ग़मों के बसर देखे ।
खुशी की उम्मीद लिए
,
वक़्त के खंजर देखे ।
नाउम्मीद को कभी
हराते ,
खुशनसीबों के
मुकद्दर देखे ।
-0-
Bahut sunder bhabhi asp dono ko badhai
ReplyDeleteRachana
Vaah... Jeevan me rishton ki uljhan ko aur unme fanse hone ki chhatpatahat, man ki oohapoh ko Sudarshan ji ne kis khubsurati se vyakt kiya hai bas kamal hai
ReplyDeleteSunita Ji ne bhi jindagi ke safar ka prabhavshali chitran kiya hai
सुदर्शन जी अनुभूति की गहनता लिए आपकी रचना मन के भीतर तक छू गई। शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteसुनीता जी भावपूर्ण कविता के लिए बधाई।
रिश्तों के कटु सत्य पर बहुत सटीक रचना ...हार्दिक बधाई दीदी !
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति सुनीता जी ..बहुत बहुत बधाई !!
मन को छूती भावपूर्ण कविताएं। सुदर्शन जी, सुनीता जी हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteरिश्तों का जाल बुनने वाला ही फंसता है ।बहुत सही कहा सुदर्शन जी ।कड़बा भी मोहक भी । कटु सत्य है यह ।बहुतअच्छा लिखा आपने । और सुनीता जी आपने भी जीवन जंग की सही तस्वीर शब्दों में आँकी है ।बधाई दोनों को इतनी सुन्दर भावपूर्ण रचनायों के लिये ।
ReplyDeleteभावपूर्ण रचनाओं हेतु सुदर्शन जी व सुनीता जी को बधाई |
ReplyDeleteपुष्पा मेहरा
सुदर्शन जी आपकी रचना मन को भीतर तक छू गई। रिश्तों के कटु सत्य पर बहुत सटीक है ये रचना ... आपको बहुत -बहुत शुभकामनाएँ !!
ReplyDeleteसुनीता जी आपकी रचना बहुत भावपूर्ण है .बहुत बहुत बधाई !!
bahut khub likha bahut bahut badhai...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचनाएँ...सीधे दिल को छूती हुई...| बहुत बहुत बधाई...|
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