पथ के साथी

Tuesday, February 9, 2016

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1-अहसास-
सिम्मी भाटिया

किसको है
एहसास
कौन है वो
जिसको दिखाऊँ
अपने जख्म
अंदर ही अंदर घुट
गमों को छुपाऊँ
आने ना दूँ आँसू
हौले से मुस्कुराऊँ
दम तोड़ रही
ख्वाहिशें
सांसे रुक ना जाएँ
हो कोई ऐसा
देख
जिसको जी जाऊँ
स्पर्श मात्र से
ऐसे खिल जाऊँ
मंत्र मुग्ध हो जाऊँ
उसकी
मीठी बातों में
उलझी ऐसी
उसके ताने-बानो में
देख सके जो मेरा गम
कह सके जो है मेरे संग
कौन है वो
जिसको दिखाऊँ
अपने जख्म
किसको है
एहसास।

-0-
2-जागो पलाश !
पुष्पा मेहरा 

सोई धरती जागी जब
कुछ यूँ बोली
बहुत सहा आघात शिशिर का
उठूँ, शबनम से मुख अपना धोकर
हिम से लड़ उसको विगलित कर
जीवन को रसमय कर दूँ।
आएँगे ऋतुराज,झाँकेंगीं किरण सखियाँ कोमल
अकेला नव विहान क्या क्या कर लेगा !
मैं भी तो कुछ उसका साज शृंगार करूँ,
सोचा जब ऐसा उसने, जाग उठी चेतना उसमें
निश्चय अटल देख धरा का
उगते सूरज ने उसके मन की बात सुनी
और धरती के रग रग में ऊर्जा भर दी ,
हरसाई धरती- कम्पन,ठिठुरन, भय लाज भुला
वह तो घूँघट खोल हँसी
फैली हरियाली , रोमांचित हुई धरा
मंद मदिर हवा गतिमान हुई
सूनेतरुवर में राग भरा ,
अमराई झूमी कोकिल कूका
ताल तलैया , नदियाँ-झरने
मन की कहने- उमड़ चले ,
बीथिका सजी, हरित पाँवड़े बिछे
बौराए अलि, तितली-दल सारे
बसंतोत्सव मनाने निकल पड़े ।
फूलों ने मधु आसव ढाला
पी पी आसव तितली दल, भौंरे ख़ूब छके ,
फिर भौंरों को जाने क्या सूझा!
कमलों के कोमल आसन पा
वे रात बिताने वहाँ रुके ,
कमलों ने भी उनको मान दिया ।
धीरे से आ किरणें झाँकीं
कमलों के पट पर थाप पड़ी
फिर खोल अधर रक्तिम- कोमल
धीरे से कमल भी हरसाया ,
नदधाराओं में अजब किलोल भरा
थिरक उठीं वे गोल गोल, धीमे धीमे ।
सोये पाखी भी जाग उठे
कलरव से गूँजा नीलम नभ
नाच उठे तितली भौंरे, मानों
हो रहा हो रंगारंग कार्यक्रम ।
कोहरे का था न काम वहाँ ,
संत समाज का ही था मान वहाँ
रंगों का अद्भुत संगम था
पक्षियों का मधुर तराना था।
रोके न रुका मन पाखी भी
उड़ चला देखकर खुला गगन
बागों में महुआ महक उठा
बौरों की कलगी से अमराई सजी
डालों पे कोकिल कूक उठा,
सेमल हँसकर यों बोला -
जागो पलाश! आये ऋतुराज ,
तुम भी आओ ! प्रिय कन्त आज
मिलकर देखेंगे वसंतोत्सव ,
यह दाह विरह का अनल सदृश
रह रह पुकारता तुम्हें आज -
आओ प्रिय ! दोनों मिलकर गायेंगे बसंत राग।
Pushpa .mehra @gmail .com

7 comments:

  1. सिम्मी जी बधाई सरस पुष्पांजलि है आपकी रचना |

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  2. मन को छूने वाले एहसास सिम्मी जी ! हार्दिक बधाई आपको !
    सुंदर बसंत ऋतु चित्रण पुष्पा जी ! हार्दिक बधाई आपको !

    ~सादर
    अनिता ललित

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  3. simmi ji bahut marmik bhav aur bahut man se likhi gayi kavita badhai basant ritu pr itna sunder likhna asan nahi aapne bahut khoob likha hai badhai pushpa ji
    rachana

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  4. सिम्मी जी बहुत मार्मिक भाव आपकी कविता मव उजागर हुए,
    पुष्पपा जी वसंत का बहुत सजीव चित्रण किया अपने। बधाई।

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  5. पूरी प्राकृति को आपने आपनी कविता में समाहित कर दिया है । पुष्पा जी । बहुत गहरे भाव लिए हुए आप की कविता सिम्मी जी ।

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  6. अनिता जी , अनिता मांडा जी ,मधुलिका जीमेरी कविता को उत्साहवर्द्धक टिप्पणी देने हेतु आप सबको धन्यवाद , रचना जी आपने ऋतुक्रम पर अधारित मेरी कविता के गूढ़ भाव को समझ कर जो प्रतिक्रिया दी उससे मेरी कविता शब्द रूप में सार्थक हो गयी आपको भी धन्यवाद | पुष्पा मेहरा

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  7. सुन्दर, मर्मस्पर्शी कविता सिम्मी जी...बधाई...|
    पुष्पा जी बेहद मनभावन पंक्तियाँ हैं...मेरी बधाई...|

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