अनिता ललित
1
आखर-आखर में ढलूँ, भर दूँ उनमें प्रान
भर दूँ उनमें प्रान, चुनूँ हर पथ के काँटे
सुमन-सुवासित भाव, व्यथा हर मन की बाँटे
जीवन का उल्लास, मिले इन चरणों में माँ
रख दो सिर पर हाथ, तृप्त मन कर दो, हे माँ !!
2
अधर-अधर मुस्का दिया, मन पुलकित है आज
ताज बसंती पहनकर, आए हैं ऋतुराज
आए हैं ऋतुराज, धरा भी है हर्षाई
पीली सरसों संग, हुई है आज सगाई
थिरक रहा है गगन, हवा लहराती चूनर
दिल में उठे तरंग, फूल हुए कोमल अधर।।
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अति सुंदर कुंड्लियों हेतु बधाई अनिता जी !
ReplyDeleteसुन्दर रचना । बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteमेरी २००वीं पोस्ट में पधारें-
"माँ सरस्वती"
अनिता जी सुंदर कुंडलिया छंद के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteसुन्दर वासंती भावों से सजी सार्थक कवितायेँ और सरस्वती वन्दना |शुभकामनाओं सहित,
ReplyDeleteसुरेन्द्र वर्मा |
वागदेबी माँ सरस्वती की वन्दना और ऋतुराज बसंत का सरस शब्दावली में गुणगान करती रचनायें बहुत ही सुंदर है ,बधाई |
ReplyDeleteपुष्पा मेहरा
बहुत सुंदर कुंडलियाँ ललितजी।
ReplyDeleteअनिताजी
ReplyDeleteमाँ सरस्वती की वन्दना अति सुंदर !हार्दिक बधाईअनिता जी !
ReplyDeleteसराहना तथा प्रोत्साहन हेतु आप सभी का हार्दिक धन्यवाद एवं आभार !!!
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
माँ शारदे की वन्दना और ऋतुराज बसंत का सुन्दर चित्रण ..मन नयन को तृप्त कर गए !
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई अनिता जी !!