1-ज्योत्स्ना
प्रदीप
क्षणिकाएँ
1-
अपने ख़्वाबों को
इतना बेग़ैरत न कीजिए
टूटें..तो गिरें आप पर
बेहयाई से
फिर....
हैरत न कीजिए ।
2
दुल्हन की हथेली पर
सुबह की लाली
बड़ी मेहरबान थी
जबकि मेहंदी
....
लहूलुहान थी
!
-0-
2- मंजूषा 'मन'
ऐ मेरी आँख के पहले सपने
फिर न जाने मुझे नींद आये कि न
आये कभी।
वो जो रूठेगा तो
मैं उसको मना लाऊँगी,
मैं जो रूठी तो वो मुझको
मनाये कि न मनाए कभी।
उसकी बातों पे यकीं
मुझको बहुत है लेकिन
अपनी तकदीर का क्या
मुस्कुराए की न मुस्कुराए कभी।
ऐ मेरी आँख के पहले सपने
मुझको इतना तू परेशान न कर
जाने ये वक़्त मुझे उससे
मिलाए की न मिलाए कभी
ऐ मेरी आँख के पहले सपने
मुझको इक बार ज़रा चैन से सो लेने
दे।
कवितायेँ और प्रस्तुति दोनों ही अच्छी हैं. बधाई. सुरेन्द्र वर्मा.
ReplyDeleteज्योत्स्ना प्रदीप की क्षणिकाएं बहुत सुन्दर हैं. कैरी ओंन . सुरेन्द्र वर्मा
ReplyDeleteमँजूश्री जी कीकविताएँ और प्रस्तुति
ReplyDeleteज्योत्स्नाजी जी की क्षणिकाएँ
मँजूषाजी की कविता सभी रचनाएँ बहुत सुंदर। बधाई।
सहज साहित्य में स्थान देने के लिए माननीय संपादक द्वय का तथा सराहना के लिए सुदर्शन रत्नाकर जी का ह्रदय से आभार। ज्योत्सना प्रदीप जी की क्षणिकाएँ और मञ्जूषा जी की कवितायेँ बहुत सुन्दर हैं
ReplyDeleteज्योत्सना जी उम्दा यथार्थ सृजन!!
ReplyDeleteमंजूश्री जी की कविताएं उम्दा एवं अभिव्यक्ति सस्वर वाहह अपूर्व जी!!
ReplyDeleteशुभकामनाएं!!
bahut payari rachnayen hain yun hi likhte rahiye bahut bahut badhai...
ReplyDeleteaap sabhi ka tahe dil se abhaar !
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन रचनाएँ हैं सभी...| बहुत बहुत बधाई...|
ReplyDeleteसुन्दर रचनाएँ और वाचन भी ..ज्योत्स्ना जी , मंजु जी , मंजूषा जी हार्दिक बधाई !
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