पथ के साथी

Wednesday, October 7, 2015

बाँटना है मुझे



1-मंजूषा मन
1-दोहे
1
चिड़िया दाना ढूँढती, फिरे डाल से डाल।
भोली को ना ये खबर, धरे शिकारी जाल।
2
पंछी सारे उड़ गए, सूनी रह गई डाल।
छुपकर एक बहेलिया, बिछा गया है जाल।
-0-
2-तुम्हारा साथ

्चित्र:गूगल से साभार
तुम्हारा साथ मिलते ही
लगा था मन को-
कि चलो अब होगा
कोई मेरा भी
कोई सुनेगा
मेरे मन की भी
बाँट लेगा कोई
मेरे दुःख दर्द

पर......
आज इस एहसास ने
फिर बिखेर दीं
सारी उम्मीदें
सब आशाएँ
आज जाना मैंने

कि......
तुम मेरे नहीं
बस मुझे ही
तुम्हारा होना है
सुनना है मुझे
तुम्हारे मन की
बाँटना है मुझे
तुम्हारे दुःख दर्द

क्योंकि.....
मैं तो हूँ
एक औरत।
-0-
2-डॉ०पूर्णिमा राय
  1
ढला सूरज ढली छाया ये  दिन ढलने की बेला है
नहीं लौटा है परदेसी ,अभी आँगन अकेला है
निगाहें टकटकी बाँधे हैं देखें राह बेटे की
पिता लेटा है शय्या पर लगा लोगों का मेला है।
2
लुटेरे लूटते जो घर, उन्हें हैवान कहते हैं
वही मंदिर शिवालय है ,जहाँ भगवान रहते हैं
बडे अच्छे ये लगते हैं, समर्पण भाव के किस्से
समर्पण है वहाँ जिन्दा, जहाँ इन्सान रहते हैं।।
3
सदा हरियाली गर चाहें, धरा पर पेड़ लगायें।
मिलेंगे फूल ,फल, छाया ,विटप त्योहार मनायें।
मिटे दुर्गन्ध साँसो की, बनेगा स्वच्छ ये जीवन।
समझके पेड़ की कीमत, चलो गलियार सजायें।।   
4
बनते बिरहा में कुन्दन वो जिनको पीर सुहाई है
खिलता अम्बर महकी धरती धूप सुहानी छाई है
सावन की बूँदों में देखो पावन निर्मल नीर भरा
चहकी- चहकी दिखती चिड़िया सोच नवेली लाई है
5
फलक पर चाँद होता है तो तारे झिलमिलातें हैं।
हरी डाली न दिखती जब ये पंछी तिलमिलाते हैं
धरा पर ओस की बूँदें लगे जैसे कि मोती हों,
हमेशा फूल पर भँवरे ,मधुर धुन गुन गुनाते हैं।।
-0-

17 comments:

  1. सुन्दर रचनाएँ!

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  2. बहुत सुंदर रचनाएँ !
    'तुम्हारा साथ'...., 'बनते बिरहा में कुन्दन वो जिनको पीर सुहाई है' ... मन को छू गए !
    बहुत बधाई मंजूषा 'मन' जी एवं डॉ पूर्णिमा राय जी !

    ~सादर
    अनिता ललित

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  3. मञ्जूषा जी डोहे व कविता बहुत अच्छे।बधाई।

    डॉ पूर्णिमा जी रचनाएँ अच्छी लगी। बधाई

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  4. सामयिक दोहे ।
    पिता लेटा है शय्या परकटु सत्य को उजागर करती रचना ।मञ्जूषा जी पुर्णिमा जी दोनों को बधाई :)

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  5. मंजूषा जी चिड़ियों पर लिखे दोहे और दुःख बांटने की विडम्बना दोनो ही सुन्दर रचना हैं | पूर्णिमा जी आपकी भी चतुष्पदी बहुत मार्मिक लगी ...पिता लेटा है शय्या पर ......| आप दोनों रचना कारों को हार्दिक बधाई |

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  6. मंजूषा जी और पूर्णिमा जी को बधाई सुन्दर रचनाओं के लिए,

    पिता लेटा है शैय्या पर मार्मिक

    और

    है समर्पण वहां जिन्दा जहाँ इन्सान रहते हैं
    अत्यंत सुन्दर

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  7. सुन्दर रचनाओं के लिए, मंजूषा जी और पूर्णिमा जी को बधाई!!!!
    चिड़िया दाना ढूँढती, फिरे डाल से डाल।
    भोली को ना ये खबर, धरे शिकारी जाल।
    और
    निगाहें टकटकी बाँधे हैं देखें राह बेटे की
    पिता लेटा है शय्या पर लगा लोगों का मेला है।
    और
    बडे अच्छे ये लगते हैं, समर्पण भाव के किस्से
    समर्पण है वहाँ जिन्दा, जहाँ इन्सान रहते हैं।।


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  9. मंजूषाजी
    बहुत सुन्दर मन भावन दोहे, व सुन्दर कविता!
    शुभ कामनाये!


    पूर्णिमाजी
    आप की कविताय हृदय पटल पर छागाई
    बहुत सुन्दर!

    उषा बधवार

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  10. सभी रचनाएं और मुक्तक लजवाब
    बधाई मंजूषा 'मन' जी एवं डॉ पूर्णिमा राय जी !

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  11. sabhi rachnayen bahut achhe lagi dohe bahut pasand aaye..sabhi ko badhai..

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  12. सभी रचनाएँ बहुत सुंदर लिखी गई हैं। कवि के कोमल मन को झझकोरती सच्चाई को प्रस्तुत करती हुई।

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  13. सुन्दर मुक्तक पूर्णिमा जी। बधाई

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  14. आप सभी का बहुत बहुत आभार। दोहे औए कविता को पसन्द करने के लिए।

    आप सब का साथ ही हमें आगे बढ़ते रहने प्रेरणा देते है।

    यूँ ही देते रहिएगा।

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  15. सभी विद्वजनों की प्रतिक्रिया से मन आनंदित है ।
    प्रोत्साहन हेतु सभी का आभार!!!

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  16. मंजूषा जी बहुत खूब ! बधाई

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  17. मंजूषा जी...आपके दोहे तो सुन्दर हैं ही...कविता जैसे हर औरत का दर्द बयान कर गयी...| हार्दिक बधाई...|
    पूर्णिमा जी...आपकी रचनाएँ बहुत पसंद आई...बहुत बधाई...|

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