1-ज्योत्स्ना
प्रदीप
क्षणिकाएँ
1
वो बुज़ुर्ग है !
नहीं......,
उसकी छत्र-छाया में
बैठो तो सही
आज के तूफानों से
बचाने वाला
वो ही तो
मज़बूत दुर्ग है ।
2
कुछ
!रिश्ते
कितने आम हो गए
!
बस हस्ताक्षर से ही.…
तमाम हो गए
!
3
महानगर की
वो छोटी- सी लड़की
पता भी न चला.…
जाने कब
बड़ी हो गई ?
किसी विरोध में
भीड़ के साथ
वो भी खड़ी हो गई !
-0-
-0-
2-अमित अग्रवाल
अजनबी शहर
अजनबी शहर की
बेदर्द भीड़ के बीच
कोई अपना सा लगा तो,
मैंने मीत
कहा था.
बेगानी इस दुनिया में
जब दर्द बाँटता मेरे
सहलाता ज़ख्मों को,
मैंने प्रीत कहा था.
गिर-गिर के सँभलने का
अहसास अनोखा था
छोटे से उस पल को,
मैंने जीत कहा था.
सूने दर पे मेरे
वो दस्तक अजीब थी
हल्की सी उस आहट को,
मैंने गीत कहा था.
-0-
3-इन्दु गुलाटी
राहें
कभी खामोश और
कभी चीखती इस राह में
एक ठहराव एक शून्य सा है
जो ऊपर उठता- सा प्रतीत होता है
जैसे हल्की सी खाली
सी
ज़िन्दगी स्वयं ही तैरती जा रही हो
डोलती नाव की तरह---
जैसे हल्की- सी खाली- सी
ज़िन्दगी स्वयं ही उड़ती जा रही हो
आवारा बादल की तरह---
यह पानी और धुएँ की रेखा
धुँधले निशाँ छोड़ती जाती है
जो इन खामोश और चीखते
क्षणों में ग़ुम हो जाते हैं
पर हलचल -सी मचा जाते हैं
एक समतल सतह पर
आने वाली सभी रेखाओं
का मार्ग रोकते हुए।
ज्योत्स्नाजी बहुत सुंदर भावपूर्ण क्षणिकाएँ। अजनबीशहर, राहें सुंदर कविताएँ। सबको बधाई।
ReplyDeleteआदरणीय काम्बोज सर,
ReplyDeleteमेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद!
ज्योत्स्ना जी, इंदु जी, सुन्दर रचनाएँ…
ReplyDelete
ReplyDeleteवो बुज़ुर्ग है !
नहीं......,
उसकी छत्र-छाया में
बैठो तो सही
आज के तूफानों से बचाने वाला
वो ही तो
मज़बूत दुर्ग है । यह विशेष
सभी रचना गागर में सागर हैं
आप सभी को बधाई
सभी रचनाएँ बेहद भावपूर्ण एवं ख़ूबसूरत !
ReplyDeleteवो बुज़ुर्ग, कुछ रिश्ते, अजनबी शहर, राहें ....सभी एक से बढ़कर एक !
ज्योत्स्ना जी, अमित जी एवं इंदु जी को हार्दिक बधाई !
~सादर
अनिता ललित
उत्कृष्ट प्रस्तुति
ReplyDeleteसभी रचनाएँ बहुत बेहतरीन ....ज्योत्स्ना जी, अमित जी तथा इन्दु जी को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteरचना पढ़ने व प्रेणना के लिए बहुत धन्यवाद आप सभी का।
ReplyDeleteकुछ !रिश्ते
ReplyDeleteकितने आम हो गए !
बस हस्ताक्षर से ही.…
rahen bhi bahut achhi rachna hai meri badhi...
तमाम हो गए !
dil ko sprash kar gayi ye rachna..
अजनबी शहर की
बेदर्द भीड़ के बीच
कोई अपना सा लगा तो,
मैंने मीत कहा था.
bahut payare bhav..bahut bahut badhai..
rahen bhi bahut achhi rachna hai meri badhai bahut saari...
ReplyDeleteज्योतसनाजी, अमितजी, इन्दुजी
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई व शुभकामनाये !
सभी रचनाये बहुत सुन्दर और भाव पूर्ण मन को छू गयी
उषा बधवार
aadarniy bhaiya ji ka hridy se abhaar jo hamesha hi hamen utsahit karte hain...saath hi rachna ko sthaan bhi dete hai
ReplyDeleteaap sabhi ka dil se abhaar ! aapka ye utsaahvardhan ...bada hi anmol hai mere liye ..
amit ji bahut sunder v sateek kavita .... -अजनबी शहर की
बेदर्द भीड़ के बीच
कोई अपना सा लगा तो,
मैंने मीत कहा था. bahut pyare bhaav...... badhai aapko !
indu ji एक समतल सतह पर
आने वाली सभी रेखाओं
का मार्ग रोकते हुए
।sunder rachna ...badhai aapko !
तीनो रचनाएँ अति सुन्दर, एवं प्रभावी
ReplyDeleteतीनो रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामना
कविता
बहुत भावपूर्ण और खूबसूरत रचनाएँ हैं आप सभी की...| आप तीनो को ही मेरी बधाई...|
ReplyDelete