डॉ०पूर्णिमा राय ,अमृतसर
गीतिका
देश-प्रेम का जज्बा जिनमें
उनके वारे न्यारे हैं।।
धरती पर ज्यों सिजदे करते ,आसमान के तारे
हैं।
आलस जिनकी रग-रग बहता ,वह जन सुख ना
पायेगा
श्रम से कोसों दूर जो रहते ,वो किस्मत से
हारे हैं।।
मोती माणिक की इच्छा में सपनों में भी खोए हैं
उलझी नैया जन्म-मरण में मिलते
नहीं किनारे हैं।।
देश-एकता खातिर आओ
मिलकर सब सहयोग करें
त्याग दें नीति लूटपाट की
मिलते तभी सहारे हैं।।
आजादी के मतवालों ने अपना जीवन वार
दिया
वीर पराक्रम की गाथाएँ युवकों
तुम्हें पुकारे हैं।।
‘पूर्णिमा’ से व्योम ये चमके ओस
की बूँदें सज रहीं
गूँज उठी
सर्वत्र दिशाएँ इंकलाब के नारे हैं।।
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बहुत उत्तम गीतिका। बधाई पूर्णिमा जी।
ReplyDeleteआजादी के मतवालों ने अपना जीवन वार दिया
ReplyDeleteवीर पराक्रम की गाथाएँ युवकों तुम्हें पुकारे हैं।।
bahut gahara sach! hardik badhai..
desh ke liye harpal jeevan arpan karane ka bhav jagati geetika manav - chetna ko jhakajhor rahi hai. purnima ji apako utkrishhT rachna
ReplyDeletehetu badhai.
pushpa mehra
देश प्रेम की भावनाओं से ओत प्रोत बहुत सुंदर गीतिका !
ReplyDeleteहार्दिक बधाई पूर्णिमा जी !!
देशप्रेम की भावनाओं में पिरोयी सुंदर गीतिका। बधाई।
ReplyDeleteदेश के प्रति प्रेम भावों से सजी सुन्दर गीतिका....बधाई पूर्णिमा जी।
ReplyDeleteदेश प्रेम की भावना जागृत करती पूर्णिमा जी की यह गीतिका अति ओजस्वी लगी |
ReplyDelete"पूर्णिमा" से व्योम ये चमके ओस की बूँदें सज रहीं
गूँज उठीं सर्वत्र दिशाएँ इन्कलाब के नारे हैं |
इन पंक्तियों ने मन पर छाप छोडी है | हार्दिक बधाई |
बहुत ओजस्वी गीत
ReplyDeleteबहुत ओजस्वी गीत
ReplyDeletesundar rachna!
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ReplyDelete‘पूर्णिमा’ से व्योम ये चमके ओस की बूँदें सज रहीं
गूँज उठी सर्वत्र दिशाएँ इंकलाब के नारे हैं।।desh prem mein pasgi ...sundar geetika ! purnima ji in panktiyon ne man ko bheetar tak coo liy ....bahut saari shubhkaamnayen !
उम्दा रचना
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteसभी विद्वजनों की प्रतिक्रिया उत्साह बढाने वाली है
ReplyDeleteआभार सभी का!!!
बहुत अच्छी गीतिका...हार्दिक बधाई...|
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