रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
मन की मुँडेर पर बैठ गया
जो पंछी चुपके से आकर
बैठे रहने दो बस यूँ ही
पछताओगे उसे उड़ाकर।
यह वह पंछी नहीं बाग़ का
डाल डाल जो गीत सुनाए,
यह वह पंछी नहीं द्वार का
दुत्कारो वापस आ जाए।
दर्पण में जब रूप निहारो
छाया आँखों में उतरेगी
बाँधो काजल -रेख सजाकर ।
बीते पल हैं रेत नदी का
बन्द मुट्ठी से बिखर गए गए हैं
किए आचमन खारे आँसू
सुधियों के रंग निखर गए हैं ।
सात जनम की पूँजी हमको
बिना तुम्हारे धूल पाँव की
बात सही यह आखर आखर।
जो भी पाती मिली तुम्हारी
छाती से हम रहे लगाए,
शायद जो हो मन की धड़कन
इस मन में भी आज समाए ।
छुए पोर से हमने सारे
गीले वे सन्देश तुम्हारे
जो हमको भी रहे रुलाकर।
जो हमको भी रहे रुलाकर।
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रचनाकाल:01-07
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अमृत सन्देश (रायपुर)19 95 ;
प्रसारण:आकाशवाणी अम्बिकापुर 15-12- 97
aapka yah geet bahut marmsaprshi hai ye panktiyan man men ghar kar gayi -
ReplyDeleteजो भी पाती मिली तुम्हारी
छाती से हम रहे लगाए,
शायद जो हो मन की धड़कन
इस मन में भी आज समाए ।
छुए पोर से हमने सारे
गीले वे सन्देश तुम्हारे
जो हमको भी रहे रुलाकर।
aapko anekonek shubhkamnaye...aapki lekhni yuv chalti rahe..
बहुत बहुत सुन्दर गीत रामेश्वर जी
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
मंजूषा "मन"
बहुत ही सुंदर गीत
ReplyDeleteBehad sundar geet, Kamboj sir!
ReplyDeletePrerna ke liye dhanyawaad...
बीते पल है रेत नदी का ... सुधियों के रंग निखर गये हैं
ReplyDeleteलाजवाब अभिव्यक्ति
मान्यवर!!!
"आखर आखर," सुन्दर गीत!!!
ReplyDelete- डाॅ कुँवर दिनेश, शिमला
ReplyDeleteबीते पल हैं रेत नदी का
बन्द मुट्ठी से बिखर गए गए हैं
किए आचमन खारे आँसू
सुधियों के रंग निखर गए हैं
बहुत ही भावपूर्ण गीत है । शब्द शब्द कहीं गहरे तक मन को छूता है ।
बीते पल हैं रेत नदी का
ReplyDeleteबन्द मुट्ठी से बिखर गए गए हैं
किए आचमन खारे आँसू
सुधियों के रंग निखर गए हैं ।
behad bhaavpurn geet ! aapki lekhni ko sadar naman rameshear ji !
man ko chhuta hua bahut sunder geet hai .
ReplyDeletepushpa mehra.
बहुत सरस भाव पूर्ण गीत ....
ReplyDeleteबीते पल हैं रेत नदी का
बन्द मुट्ठी से बिखर गए गए हैं
किए आचमन खारे आँसू
सुधियों के रंग निखर गए हैं ।.......बहुत मोहक !
हार्दिक बधाई ..सादर नमन !!
11 वर्ष बाद भी गीत की सुवास और
ReplyDeleteताजगी ज्यों की त्यों बरकरार है ।'आखर
आखर, छुए पोर से" बहुत ही सुंदर !
सरस भावभीने मधुर गीत के लिए नमन ।
छुए पोर से हमने सारे
ReplyDeleteगीले वे सन्देश तुम्हारे
जो हमको भी रहे रुलाकर।
बहुत सुंदर, भावपूर्ण गीत ! दिल को छू गया !
हार्दिक बधाई हिमांशु भैया जी !!!
~सादर
अनिता ललित
ReplyDeleteरामेश्वर जी मन की मुँडेर गीत भावोंकी सच्ची अभिव्यक्ति हैः भाव समय के पाबंध नही होते। वे शाश्वत होते हैं।
वर्षों पूर्व रचा गया गीत आज भीं तरोताजा है हृदयस्पर्शी भावनाओं के साथ। बधाई। बहुत अच्छी लगी एक एक पंक्ति। ज्यादा सुहाई …
दर्पण में जब रूप निहारो
छाया आँखों में उतरेगी
बांधो काजल -रेख सजा कर।
आपके इस असीम स्नेहभाव और उत्साहवर्धन के लिए बहुत आभारी हूँ।
ReplyDelete-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
छुए पोर से हमने सारे
ReplyDeleteगीले वे सन्देश तुम्हारे
जो हमको भी रहे रुलाकर।
बहुत सुन्दर भावपूर्ण गीत....हार्दिक बधाई भाईसाहब!
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबधाई एवं शुभकामनायें
बहुत मोहक मधुर गीत।शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteकालजयी उत्कृष्ट गीत . भाव विभोर हो गई .
ReplyDeleteबधाई भाई .
भाई काम्बोज जी , बहुत सुन्दर रचना है विशेषकर यह पंक्ति... किये आचमन खारे आंसूं | सुधियों के रंग निखर गए हैं | बहुत मन भाई | हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteरचना पसन्द करने के लिए आप सबका हार्दिक आभार !
ReplyDeleteजो भी पाती मिली तुम्हारी
ReplyDeleteछाती से हम रहे लगाए,
शायद जो हो मन की धड़कन
इस मन में भी आज समाए ।
छुए पोर से हमने सारे
गीले वे सन्देश तुम्हारे
जो हमको भी रहे रुलाकर।
शब्दों की इस सरिता में बहते हुए बरबस मन भीग गया | इतनी मर्मस्पर्शी रचना के लिए आपकी कलम को नमन सहित बहुत बहुत बधाई...|