1-भावना सक्सेना
खर्च हो जाता है दिन
झोले में भर यादें कई
अफसोस है इतना- सा बस
कि दिन ऐसे कितने खर्चे
जिनका झोले में
कुछ हिसाब नहीं।
बेहिसाबी के
इस सफ़र का ही
तो नाम है जिंदगी।
-0-
2-कमल कपूर
1-
मेरी पहचान
मैं शब्दों की पाखी हूँ
मुझे चाहिए अक्षरों का चुग्गा जीने के लिए
स्याही का पानी पीने के लिए
और उड़ने के लिए कागजी आसमान
जो देखना चाहते हो मेरी उड़ान
तो गगन के स्तर को
ऊँचा, ऊँचा और ऊँचा कर दो
या कि फिर
धरा के स्तर को ही
नीचा ,नीचा और नीचा कर दो।
2
जीत का जश्न तो मनाते हैं जमाने में सभी
हार पर
हार चढ़ाओ तो कोई बात बने।
दर्द
रोने से कभी
दूर न होगा
यारो!
तुम दवा इसको
बनाओ तो कोई बात बने।
-0-
3-रेखा रोहतगी
सौ बार हारी
पर हारते रहने से
न हारी
करती रही
खेलते रहने की तैयारी ,
-0-
bahut hi sunder kavitayen hain. bhavana, kamal va rekha ji ko badhai.
ReplyDeletepushpa mehra.
sabhi rachnayen achhi lagin meri hardik badhai....
ReplyDeleteसुन्दर ,, बधाई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचनाएँ .हार्दिक बधाई !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचनाएँ .हार्दिक बधाई !
ReplyDeleteसुन्दर कविताएं....बधाई!
ReplyDeleteसुंदर रचनाएँ
ReplyDeleteअनूठी रचनाएँ ..मन को भा गईं .. बधाई
ReplyDeleteकमल जी ,रेखा जी ,भावना जी सुंदर रचनाओं के लिए बधाई।
ReplyDeleteभावना जी,जिन्दगी के सफर की क्या खूब परिभाषा की।... झोले में यादें।
ReplyDeleteकमल कपूर तुम्हारी रचना , रचना कार की तुलना पाखी से भी अच्छी लगी ।हार पर हार चढ़ाओ तो कोई बात बने सुन्दर बात ,सह भी दर्द रोने से दूर न होगा ।रेखा रोहतगी आप ने भी बहुत अच्छी कही - सौ बार हारी ...
सच्चे खिलाडी का चित्र खूब जँचा वधाई सब को शुभ कामनायें ।
bahut sundar rachnayen..haardik badhai!
ReplyDeleteरेखा जी हार में ही जीत छुपी होती है किसी न किसी दिन मिल ही जाती है |आप सभी की कवितायें बहुत सुन्दर भावपूर्ण हैं हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचनाएँ हैं...आप सबको हार्दिक बधाई...|
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