डॉ•योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’
1-जाना है उस पार
सबके दुःख-सुख मेरे जैसे,सबसे
कर लूँ प्यार!
जाना है उस पार!!
नशा अहं का जब भी चढ़ता,
तब विवेक सो जाए!
कर्म-शक्ति मिट जाती है तब,
भाव- शून्य हो जाए!!
सबके सपने मेरे
ही जैसे, सब कर लूँ साकार!
जाना है उस पार!!
सेमल फूल -सा जग है प्यारे,
मिटना है कल सारा!
फिसल जाएगा सब कुछ ऐसे,
ज्यों मुट्ठी
से पारा!!
सबकी मंजिल मेरे जैसी, अब
कर लूँ स्वीकार!
जाना है उस पार!!
स्वर्ग - नरक सब यहीं देखते,
सब कुछ यहीं मिले!
काँटे जो बोए, मिलेंगे काँटे ,
फूल खिलाए,फूल मिले!!
सब के भाव
हैं मेरे जैसे, तो कर लूँ उपकार!
जाना है उस पार!!
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2-स्वीकार कर लो
ज़िंदगी जो भी तुम्हे दे,
हँस कर उसे स्वीकार कर लो!!
ज़िंदगी देती सभी को,
इसलिए लगती है प्यारी!
काँटे मिलें या फूल, ले लो,
ज़िंदगी हमदम तुम्हारी!!
मौत को बस भूल जाओ,
जीवन को अंगीकार कर लो!!
मौत तो सब को डराती,
ज़िंदगी लोरी सुनाती!
सृजन का इक मंत्र देकर,
ईश्वर तुम को बनाती!!
सृजन को अपना बना कर,
ये धरा स्वर्ग समान कर लो!!
अमृत तुम्हारे पास ही है,
पहचान उसकी आज कर लो!
मिट सकेगा मौत का भय,
दिव्यता से ह्रदय भर लो!!
होगा अमर जीवन तुम्हारा,
कष्टों का सागर
पार कर लो!!
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3-प्यार
प्यार तो बस
ज़िंदगी की आस है!
सच कहूँ तो प्यार इक अहसास है!!
प्यार से
दुनिया सदा रौशन हुई,
आम हो कर भी, सदा ये ख़ास है!!
प्यार को जिसने भी जाना है यहाँ,
बन के मीरा, कृष्ण के वो पास है!!
लूट ले कोई किसी को कितना भी,
प्यार कब लुटता, सभी के पास है!!
मरने पर भी आँख
बंद होती नहीं,
प्यार में आने
की उनके आस है!!
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4-चिंतन से जीवन भर लो
चिंता को छोडो, चिंतन से जीवन भर
लो!
क्यों पीते हो ज़हर,स्वयं को अमृत कर
लो!!
चिंता चिता समान जगत्
में,
चिंतन ही अमृत देता है!
तन-मन पावन हो जाते हैं,
ज्योति ऐसी भर देता है!!
संदेह छोड़ कर, विश्वासों से मन भर लो!,
क्यों पीते हो ज़हर,स्वयं को अमृत कर
लो!!
संदेहों से अंधा
हो जाता जीवन,
उजियारा विश्वासों से ही मिलता है!
छोडो अंध-कूप में नित डूबे रहना,
ह्रदय-कमल तो विश्वासों में खिलता है!!
स्वार्थ छोड़ कर,परोपकार से जीवन भर
लो!
क्यों पीते हो ज़हर, स्वयं को अमृत कर
लो!!
जीकर अपने लिए मिलेगा क्या बोलो,
खुशियाँ देकर ही तो खुशियाँ पाओगे!
जिस पल जी लोगे दूजों की खातिर तुम,
उस पल समझो अमृत ही हो जाओगे!!
अहं छोड़ कर,विनय से यह जीवन भर लो!
क्यों पीते हो ज़हर,स्वयं को अमृत कर
लो!!
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संक्षिप्त परिचय
डॉ•योगेन्द्र नाथ शर्मा
‘अरुण;
जन्म : 7 जनवरी, 1941 , कनखल , हरिद्वार
शिक्षा: एम.ए. (हिन्दी);
साहित्यरत्न ; पी-एच.डी डी.लिट्.
पद:कई महाविद्यालयों में प्राचार्य
प्रकाशन:-प्राकृत –अपभ्रंश इतिहास
दर्शन,जैन कहानियाँ, दादी माँ ने हाँ
कह दी, जैन रामायण की कहानियाँ,काव्य
सरोवर का हंस : उदय भानु ‘हंस’ , श्याम सिंह शशि :सृजन एवं मूल्यांकन, आदर्श और अन्य कहानियाँ, अभिनन्दन आदि कई संग्रह ।
सम्पर्क: 74/3, न्यू नेहरू नगर, रूड़की-247-667( उत्तराखण्ड),
फोन: 011-91-1332-265973
ई मेल: ynsarun@hotmail.com
बहुत सुन्दर भाव
ReplyDeleteसुन्दर कविताएँ
ReplyDeleteजीवन मन्त्र सरीखी सभी रचनाएँ बहुत सुन्दर ,प्रभावी हैं |
ReplyDeleteचिंता को छोडो, चिंतन से जीवन भर लो!
क्यों पीते हो ज़हर,स्वयं को अमृत कर लो!! अनुपम है !!
आदरणीय डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा 'अरुण' जी के प्रति सादर नमन -वंदन के साथ
ज्योत्स्ना शर्मा