1
पानी तो बहता है ,
उसका अपना है अधिकार
बिना जल के मछली तड़पे ।
माँ का दिन
केवल एक दिन ,
जो बुनती है अपने बच्चों के सपने ।
क्या है यह माँ?
ईश्वर का अवतार,
प्यार का सिन्धु ,
वात्सल्य की प्रतिमा ,
अमृत की सरिता ,
अवतारों का अवतार ।
इंसानियत की कसौटी ,
धरा पर एक अनमोल रत्न ।
आँखों में अश्रु भरे
अपनी पीड़ा को छुपाए ,
रक्षा कवच पहने एक सिंहिनी ।
केवल पश्चिम में
उसके लिए एक एक दिन ,
जबकि उसका का हर पल
अपनी औलाद के सुख के लिए।
इतनी कंजूसी उस माँ के लिए ,
जिसका जीवन उसका परिवार ।
कैसे बदले यह नयी सोच ,
नया विचार ,
धिक्कार –धिक्कार !!
2
जीवन की व्यथा
बन गयी एक कथा
संघर्षों का बोझ
अब कैसे उठा पाऊँ?
3
मार्ग अनेकों
कोई दुर्गम , कोई पथरीला
क्लांत पथिक
कौन उसे सीधी राह दिखाए ।
4
मित्र मिले बचपन में
एक साथ पढ़े और खेले,
बड़े हुए तो बिछुड़ गए
अब कैसे उनसे मिल पाएँ।
5
आयी वसंत ऋतु
विटप, तडाग, लतिकाएँ
कोयलिया आम्र-फुनगी पर बैठी
गीत सुनाए ।
6
प्रीतम गये परदेस
भूलि गए मोको ,
बदरवा गर्जत
उनकी बहुतै याद सताए ।
पानी और मछली का प्यार
कैसा है एकतरफा वलिदान,
पानी को नहीं होता कोई गम ,
चाहे कभी भी मछली तोड़ दे दम।
आदरणीय त्रिपाठी जी , आपकी सभी कविताएँ प्रभावित करती हैं। माँ पर केन्द्रित आपकी कविता में आपने कृत्रिम संस्कृति पर जो चिन्ता जाहिर की है , वह जायज है। ये दिवस भी एक कर्मकाण्ड बनकर रह गए हैं। बाकी दिन कैसे बीतते हैं , उसको भी खँगालना ज़रूरी है।
ReplyDeletemaa kai bare mai sundar abhivykti hai dhanyabad
ReplyDeleteयह सोच तो हम इंसानों के भटके दिमाग की है... वर्ना 'माँ' तो हर साँस में है ...
ReplyDeleteअच्छी कविताएँ ! हार्दिक बधाई आदरणीय श्याम त्रिपाठी जी !
~सादर
अनिता ललित
bahut sundar bhaw .....ma ka par pal hota hai ik din nahi ...
ReplyDeleteआदरणीय त्रिपाठी जी......हार्दिक बधाई!
ReplyDeleteसभी कविताएं बहुत भावपूर्ण। माँ पर लिखी कविता तो सच में बहुत सुन्दर और विचारनीय है। पल-पल संतान के सुख की कामना करने वाली माँ के हिस्से केवल एक ही दिन। हद प्यार की जो फिर भी कभी उफ नहीं करती।
माँ तू कमाल
हिस्से दिन १ फिर
नहीं मलाल।
सादर
कृष्णा वर्मा
sach maa ke liye eak nahi harek din hota hai hardki badhai...
ReplyDeleteमातृ दिवस पर प्रश्नचिन्ह से पूर्णतयाः सहमत!
ReplyDeleteधन्यवाद त्रिपाठी जी!
आदरणीय त्रिपाठी जी, जीवन के विभिन्न पहलुओं को शब्दबद्ध करतीं आपकी रचनाएं अत्यंत भावपूर्ण हैं | हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteशशि पाधा
त्याग और बलिदान की परिभाषा,
ReplyDeleteधरा पर एक अनमोल रत्न ।
आँखों में अश्रु भरे
अपनी पीड़ा को छुपाए ,
रक्षा कवच पहने एक सिंहिनी ।BAHUT SUNDER !.....SABHI RACHNAYEN BAHUT BHAAV PURN HAI .PAR MAA WALI ...MAN MOHNE WALI...AADARNIYA TRIPATHI JI KO TATHA UNKI LEKHNI KO SADAR NAMAN .
bahut sunder abhivyakti
ReplyDeletemeri kavita 'maa ka anchal' bhi padhein http://merisyahikerang.blogspot.in/2015/05/blog-post_12.html
komal , sundar bhaavon se bhari bahut sundar rachanaayen . 'maa' par anupam bhaavaabhivyakti !
ReplyDeletehardik badhaaii aadaraneey .
saadar naman ke saath
jyotsna sharma
श्री श्याम जी की कविता माँ के सुन्दर रूप सुन्दर भावों के साथ पढने को मिले हार्दिक धन्यवाद |
ReplyDeleteसविता अग्रवाल "सवि"
जो माँ अपनी खुशियाँ और समस्त सुख अपनी संतान के लिए त्याग देती है, उसी माँ की बेकदरी करने में वही संतान एक पल भी नही सोचती...| बहुत मर्मस्पर्शी रचनाएँ...| बधाई...|
ReplyDelete