सुनीता अग्रवाल ( नेह)
1 - सूरज का इन्तजार
जम गयी है
डल झील
अब
नहीं चलते शिकारे
हसीं ख़्वाबों के
इन आँखों को है
सूरज का इन्तजार
-0-
2 -उगा सूरज
लो
उगा सूरज
फ़ैल गया उजियारा
कुछ बड़े -बड़े
बंद झरोखे वाले घर
सर उठाये खड़े है
प्रतीक्षित
आज भी ।
-0-
3-मेरे मन
जाओ
खोल दी मुट्ठी
उड़ो
अब
तुम्हारे हौसलों पर निर्भर है
बनोगे तितली
या
छुओगे गगन
मेरे मन ।
-0-
4- टूटता तारा
हटात् चमकती
भुकभुकाती लौ
टूटता तारा
कौतूहलवश
इन्हें देखना और खुश होना
और बात होती है
इस अवस्था को जीना
जिन्दगी नासूर बना देती है
-0-
5–अधूरी प्यास
जरूरी है
रहे कुछ प्यास अधूरी
पूर्णमासी
है आहट
अमावस्या की
-0-
6- आँधियो की अदा
अजब निराली
आँधियों की अदा
उड़ा ले जाती
धूल पुरानी
धर देती नई
-0-
( रेखांकन : रमेश गौतम, इन चित्रों का कॉपी राइट सुरक्षित है । रमेश गौतम जी की अनुमति के बिना इनका उपयोग नहीं किया जा सकता है। )
Khsnika ke mere is pratham prayas ko prakashit kr mera utsah badhane ke.liye kamboj bhaiya ji ka tahedil se aabhar :)
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएँ सुन्दर हैं ! बंद झरोखों वाले बड़े घरों के अँधेरे कैसे दूर हों भला ...बहुत सुन्दर ,सटीक !
ReplyDeleteहार्दिक बधाई !!
उत्साह बढ़ाने के लिए हार्दिक आभार ज्योति कलश जी सविता जी :)
ReplyDeletebahut gahan meri badhai...
ReplyDeletehaardik aabhar :)
Deleteबहुत सुन्दर क्षणिकाएँ हैं...बधाई...|
ReplyDeletehaardik aabhar :)
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ReplyDeleteलो
उगा सूरज
फ़ैल गया उजियारा
कुछ बड़े -बड़े
बंद झरोखे वाले घर
सर उठाये खड़े है
प्रतीक्षित
आज भी ।
-0- sunder ,saarthak v sateek .... mana pratham prayaas, par... bahut khaas ,,, ,isi tarah likhti rahiye . himanshu ji ki prerna
ki dhaaraye aviral ,nirantar bahatee rahe .badhai.
utsah badhane ke liye haardik aabhar :)
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