लघु कविताएँ - डॉ सुधा गुप्ता
1-घर
तिनके,
धागे
कतरन ,
पर
नन्ही चिड़िया
ने
बना लिया
घर ।
-0-
2-रात – माँ
बड़ी , परेशान
थी
रात - माँ
सर्दी न
खा जाएँ कहीं
शरारती बच्चे
तारे –
कोहरे का
कम्बल ओढ़ा कर
ऊँचे पलँग
पर
बैठा दिया
हैं…
-0-
3-हमजोली
कोहनी तक
चूड़ियों भरे
हाथ लिये
वोगनविला
खिलखिलाती हैं ।
पास बुलाती
हैं ,
खुरदरे गात
हेमन्त ठिठुरे
पात –
हम
जोलियों की
खिल्ली उड़ाती
हैं ।
-0-
4-सिर्फ़ एक धुन
उदासी में
डूबी सुबह
उदासी में
भीगी शाम
उदासी का
जाम
ज़िन्दगी की
बाँसुरी पर
सिर्फ़
एक धुन
बजती हैं –
एSS
क तेरा
नाम ।
-0-
5- तपिश और आग
दिल के आतिशदान
में
चटख़ती यादों !
तपिश तो ठीक
है,
सही जाएगी
उफ़ !
आग ऐसी !
मत बनो
बेरहम इतनी
मेरी
दुनिया जल ही जाएगी !
-0-
6-दो पल में
कहाँ-
कहाँ हो
आया मन
दो पला
में
क्या-
क्या पाया
खो आया
मन
दो पल में
…
-0-
7-इन्तज़ार
इन्तज़ार्……
पलकों पर
काँपते
आँसुओं की बन्दनवार
कि / पुतली की रोशनी
में
झिलमिलाते /दीयों
की क़तार …
-0-
8-दस्तक
स्वीटपीज़ की गंध
धीमे –
धीमे/ हवा पर बैठ
सरसराती/ आती हैं
कोई महक
भरी याद
हौले –हौले
मेरे दिल का
दरवाज़ा
थपथपाती हैं –
न,
नहीं खोलूँगी !
-0-
9-फाँस
बदल गया
मौसम
फूल गए
अमलतास
करक गई /
ज़ोर से
फिर कोई फाँस…
-0-
10-चोट
सुबह-सवेरे
कोयल बोली / कहाँ पी का गाँव
मौसम-बहेलिया
मँजे खिलाड़ी-सा
फेंक गया
दाँव
टप से गिरी
मैं
चोट खाई
चिड़िया-सी
बाज़ी फिर
उसके हाथ रहेगी !!
-0-
11-मृग- जल
हौले –से
तुमने/ तपता मेरा हाथ
छुआ, और पूछा -
‘अब कैसी
हो?’
…झपकी आई थी !
-0-
12-सान्त्वना
फूल
मुझे बहलाने
आए—
मेरे पास
बैठ कर
हिचकी
भर-भर
रोने लगे …
-0-
13- सिसकी
बहुत देर
रो –रो कर
हलकान
हो-हो कर
सो जाए/ कोई बच्चा
काँधे लग
कर
तो/ नींद में
जैसे बार- बार
उसे सिस की
आती है,
ऐसे
मुझे तेरी
याद आती है…।
-0-
अतीव सुन्दर मनस्पर्शी रचनाएं सुधा दी!
ReplyDeleteसादर
कृष्णा वर्मा
प्रणाम दीदी ! ..जतन से , सलीके से सहेजी भावनाएं जैसे तप के ,धुलके निखर गईं ...और फिर रोके न रुकीं कागज़ पे बिखर गईं !! 'सान्त्वना' , 'सिसकी', 'इंतज़ार' क्या कहिए सभी एक से बढ़कर एक ,
ReplyDeleteमन को छू लेने वाली ,बेहद भावपूर्ण प्रस्तुति !!
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
सभी क्षणिकाएं बेहतरीन हैं। डॉ सुधा गुप्ता जी को हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDeletesabhi rachanaen bahut hi marmshparshi hain. didi ji apko aur apaki lekhni ko naman .
ReplyDeletepushpa mehra.
नि;शब्द कर दिया इन क्षणिकाओं ने | संवेदनशील, हृदय को छूती हुईं | जितने बार पढ़ें , एक नया अहसास | धन्यवाद आदरणीय |
ReplyDeletebahtreen ... dil ko bhitar tak chhuti huyi kshnikaye ... sudha di ki lekhni se sikhne ko bhi milta hai bahut kuchh ..naman hai :)
ReplyDeleteसुधा दीदी जी,
ReplyDeleteनन्हीं कलियों में सिमटी ख़ुश्बू जैसी...
कोमल भावनाओं में लिपटी तरंगों जैसी ...
सभी क्षणिकाएँ मन को छू गयीं .... विशेषकर फूल, सिसकी, सांत्वना।
इस सुंदर सृजन के लिए आपको ह्रदय से बधाई।
~सादर
अनिता ललित
in rachnaon ko padhkar kuchh vakt ke kiye samaya ruk gaya or mere man chakr men kahin kuchh fans sa gaya ,kahin dard, kahi payar,kahi kuchh chubha sa jaise sudha ji ne mere saare man ke taron ko eaksaath hila diya ho,itni ghanta sudhaji hi la sakhti hain mera unko shat shat naman..
ReplyDeleteआप सभी की सार्थक टिप्पणियों के लिए तहे -दिल से शुक्रिया !
ReplyDeleteeak se badhkar eak...man ko choone wali behad sunder v bhaavpurn abhivyakti .sudha ji ko pranaam ke saath -saath bahut badhai ..himanshu ji ka abhaar... itni khoobsurat rachnaye padhvane ke liye .
ReplyDeleteबहुत अनोखी...बहुत सुन्दर...दिल को गहरे तक स्पर्श करती लघु-कविताएँ...| हार्दिक बधाई और सादर प्रणाम...|
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