पुष्पा मेहरा
1
करौंदे की
झाड़ी के इर्द-गिर्द
लगी गुलाब की
बाड़ से
मैंने -
हँसते गुलाब की
एक टहनी तोड़
ली,
उसने हँसते
हुए अपना काँटा
मेरी उँगली
में चुभा दिया
मैं दर्द से
कराहती रही
पर देखो तो
ज़रा
गुलाब है कि
वह हँसता ही रहा ।
2
सूनी गलियाँ-
आज शोर भरी
हैं
ऊँघती
हवाएँ भी जाग उठी हैं
सब तरफ़ सनसनी
छाई है,
कहीं कुछ तो
घटा है !
3
कौन कहता है
!
दीवार खड़ी
करने से
पानी की
धाराएँ रुक जाती हैं
वे तो अपनी
झिरी पहले ही खोज लेती हैं ।
4
वक्त ख़ामोश
था , बेख़ौफ़ था,
साथ चलता रहा
हसीन पलों को
छलता
रहा ।
5
वे जो पहाड़ हैं
केवल पाषाण नहीं हैं
उनके सीने में भी दिल है
जिसमें परमार्थ का दरिया बहता है
और कोंपलें फूटती हैं ।
-0-
पुष्पा मेहरा- बी-201, सूरजमल विहार, दिल्ली-100092
4
ReplyDeleteवक्त ख़ामोश था , बेख़ौफ़ था,
साथ चलता रहा
हसीन पलों को
छलता रहा ।
Bahut sunder soch ko shabdon mein abhivyakt kiya hai Pushpaji
बेहद भाव पूर्ण रचनाएँ ....
ReplyDeleteहँसता गुलाब ..दीवार ...वक़्त ...पाषाण ...लाजवाब सभी !!!
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteपुष्पा जी गुलाब हंसता रहा ..बहुत ही गहरी कविता है बहुत से भाव छिपे है इस में | हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteकौन कहता है !
ReplyDeleteदीवार खड़ी करने से
पानी की धाराएँ रुक जाती हैं
वे तो अपनी झिरी पहले ही खोज लेती हैं ।
कौन कहता है.....वक्त ख़ामोश था.... बहुत खूब रचानाएं पुष्पा मेहरा जी....बधाई !
ReplyDeleteUprokt kavi haikukaron dvara meri kavitaon ne sarahna pai unako hriday se dhanyavad .sath hi kamboj bhai ji ko bhi mera dhanyavad ,jinake sahyog se meri choti kavitayen bhi prakash mein ayin.
ReplyDeletePushpa mehra.
कौन कहता है !
ReplyDeleteदीवार खड़ी करने से
पानी की धाराएँ रुक जाती हैं
वे तो अपनी झिरी पहले ही खोज लेती हैं ….
अति सुन्दर !
gulab hai ki hansta hi raha.....
ReplyDeletekaun kahta hai .....apni jhiri pahle hi khooj leti hai ...... sakratmak bhaav liye bahut sunder v bhaavpurn rachnaye pushpaji...badhai.
कौन कहता है !
ReplyDeleteदीवार खड़ी करने से
पानी की धाराएँ रुक जाती हैं
वे तो अपनी झिरी पहले ही खोज लेती हैं ….
बहुत सुन्दर...|
सभी रचनाएँ दिल को छूती हैं...पूरी तौर से...| हार्दिक बधाई...|