1-जब याद तुम्हारी
सुदर्शन रत्नाकर , फ़रीदाबाद
जब
याद तुम्हारी आई माँ
तब
आँखें भर- भर आई माँ
बचपन गया
बुढ़ापा
आया
मेरे संग-संग आई माँ
सम्बंधों के अहसासों को
कभी भूल ना पाई माँ
मेरी ख़ातिर तूने हरदम
बाबा से लड़ी
लड़ाई माँ
कई बार तू भूखी सोई
पर
रोटी मुझे खिलाई माँ
सर्दी में भी रही,ठिठुरती
ओढ़ाकर मुझे
रज़ाई माँ
क्यों भूलूँ उपकार तुम्हारे
तू
प्यार –भरी कविताई माँ
।
-0-
2-माँ की ममता
का
- पुष्पा मेहरा
माँ की ममता का
आँचल पकड़ कर
हम डगमग - डगमग
चले
माँ पगों की
शक्ति बनी
हमारी पग-पायलों
की रुनझुन में
डूबती उतराती
माँ -
सदा स्वयं को ही
न्योछावर करती रही
और हम बेख़बर रहे
।
विशाल हृदया माँ
ने
कभी भी अपनी
पीड़ा
किसी से न बाँची
निश-दिन पर-पीड़ा
ही हरती रही ।
कर्म की नाव को
श्रम की कीलों
से जड़ कर
धर्म की धारा
में
वो सदा ही तैरती
रही ।
स्व श्रम-सीकर
कभी भी न पोंछ
सकी
नौनिहालों के
श्रम-सीकर
पोंछ कर ही तृप्त होती रही ।
अपनी ढुलकी
आँखों में
सुख सपने सजाए
प्रतिदिन उजाले
और अँधेरे में
प्रकाश ही
प्रकाश देखती रही ।
वह कभी रिश्तों
के लिये नहीं
अपितु वह तो
रिश्तों में ही जीती रही
और मिठास घोलती
रही ।
माँ का स्वरूप
उसकी
हृत्-कंदराओं में
बसा रहता
वह तो बिना
प्रयास
जब-तब सहज ही उमड़ पड़ता ।
प्रथमत: दुग्ध -
धारा में,
कहीं छलकते -
झलकते
स्नेहाश्रुओं
में,
कभी लोरी के संगीत में,
कभी धूल पोंछते
हाथों
कहीं ईंट-रोड़ी
ढोती
छाले पड़े हाथों
से
नव-शिशु को
सहलाने में ।
माँ मात्र एक
शब्द नहीं
एक अहसास है जो
उसके
उद् गारों में
फूटता है
हम नारियाँ
यह तभी समझ पायी
हैं
जब मात्र नारी न
हो कर
हम माँ भी कहलाई
हैं ।
समय की पर्तों
में
धीरे-धीरे माँ
का नश्वर तो
खो जाता है
किन्तु माँ कभी
नहीं ।
-0-
माँ पर जितना भी लिखा जाए कम है....एक माँ शब्द में ही सब समाया है...
ReplyDeletema par kuch likhna hi hame aashirvaad milne jaisa hai.....bhaav itne khoobsurat ho to kya baat..ishwer kare hum sabhi par ma ka aashirvaad bana rahe..snehil kavitao ke liye badhai
ReplyDelete.sudarshanji ,pushpaji ko
दोनों कवितायें बहुत सुन्दर... हृदयस्पर्शी !
ReplyDeleteसुदर्शन दीदी जी, पुष्पा जी आपको हार्दिक शुभकामनाएँ !
~सादर
अनिता ललित
yadon men jeeti ma ka chitran bahut bhavpurn hai. sudarshan ji apako badhai.
ReplyDeletepushpa mehra.
Mamata bhari paktiyan padhkar man bhar aaya...
ReplyDeletema pr sunder shabd .man ko chhu gayi dono kavita badhai aap dono ko
ReplyDeleterachana
सुदर्शन जी और पुष्पा जी सुंदर और मन को छू लेने वाली कविताओं के लिए आप दोनों को हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteसविता अग्रवाल "सवि"
बहुत सुंदर मन को छु लेने वाली कविता है |बधाई |
ReplyDeleteयाद तुम्हारी आई माँ ..सचमुच आंखे भर आईं .....दोनों रचनाएँ पढ़कर .....हृदय से बधाई !!
ReplyDeleteसादर
ज्योत्स्ना शर्मा
jab yad tumhari ai ma ,tab ankhe bhar ain ma ,............ sambandho ke ahsason ko, kabhi bhul na pai ma.bahut hi sargarbhit panktiyan hain.sudershan ji apko badhai.
ReplyDeletepushpa mehra.
kamboj bhai ji ne ma vishayak kavita ko sahaj sahitya men sthan de kar mujhe protsahit kiya is hetu main hriday se unaki abhari hun.
ReplyDeletepushpa mehra.
माँ होती ही ऐसी है...जितना कहो, उतना कम लगता है...| भावपूर्ण, मर्मस्पर्शी कवितायेँ...हार्दिक बधाई...|
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