रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
कुछ मन पावन होते हैं।
कुछ मन भावन होते हैं
बात तुम्हारी जब होती
नैना सावन होते हैं ।
2
उम्र प्यार की कब होती
तन के भोगी ना जाने हैं,
सच्चे दिल ही पहचाने हैं।
3
परस तुम्हारा मिल जाए
जब दुनिया से चलना हो,
भोर –किरन का छू जाना
तुझे देख जब खिलना हो ।
4
जीवन में कुछ भी मिल जाए
घाटा लगता है ,
बच्चों के बिन घर-आँगन
सन्नाटा लगता है ।
वाह ! बहुत ही प्यारी कवितायें हैं !
ReplyDeleteजीवन में कुछ भी मिल जाए
घाटा लगता है ,
बच्चों के बिन घर-आँगन
एकदम सही !!!
बहुत ही सुंदर बात कही है -बच्चों के बिन घर आँगन सन्नाटा लगता है | थोड़े शब्दों में बड़ी बात |
ReplyDeleteबहुत ही सशक्त रचनाएं ....दिल छू गयी
ReplyDelete"जीवन में कुछ भी मिल जाए
घाटा लगता है ,
बच्चों के बिन घर-आँगन
सन्नाटा लगता है ।"
डॉ सरस्वती माथुर
जीवन का हर रंग...हर महक मौजूद है इन पंक्तियों में...| आप इतना दिल से लिखते हैं कि हर भावना पाठक को सीधे दिल में छूती है...| संवेदना के सारे तार झंकृत हो जाते हैं...|
ReplyDeleteआभार और बधाई...|
ज़िन्दगी की गह्री सचाइओ को सह्ज़ भावनाओ से बुनी ये कबिताये मन को छू गयी आपकी लधुकथाओ से वाकिव थी कविताओ से आज ताह्रूफ हुआ
ReplyDeleteमेरी शुभ्काम्नाये ओर् लिखे खूब लिखे ओर पाथको को इस्का रसास्वदन क्र्राते रहे
वह्ह्ह अतिसुन्दर ... सादर नमन
ReplyDeleteItna marm, itna sneh dil ke marm ko chhu gayi, bahut bahut badhai.
ReplyDeleteबहुत कोमल ,मधुर अभिव्यक्ति ....सुन्दर रचनाओं के लिए हृदय से बधाई !!
ReplyDeleteसादर नमन के साथ
ज्योत्स्ना शर्मा
jeevan mein kuch bhi mil jaye ,ghata lagata hai..............,anya kavitaon ke sath ye panktiyan bhi vastvik satya nirupit karti hain bhai ji in sunder bhavon ki abhivyakti ke liye apako hardik badhai.
ReplyDeletepushpa mehra.
बहुत भावपूर्ण सरस रचनाएं......हार्दिक बधाई !
ReplyDeleteसादर
कृष्णा वर्मा
ये कोमल अभिव्यक्ति तो कोई प्यार भरा दिल ही कर सकता है जो प्यार के हर रूप को जी चुका हो।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई
कुछ मन पावन होते हैं।
ReplyDeleteकुछ मन भावन होते हैं
बात तुम्हारी जब होती
नैना सावन होते हैं ।
bhaiya kya kahun bahut kamal ka likha hai man ko chhu gaya
saader
rachana
ये सब रचना हिन्दी पाठ्यक्रम में हो तो अति उत्तम होगा .
ReplyDeleteसर्वश्रेष्ठ रचनाएँ
बधाई भाई रामेश्वर जी .
आप सबके इस अप्रिमित स्नेह और सम्मान के लिए अन्तर्मन से अभिभूत और अनुगृहीत हूँ। यही अपनापन बनाए रखिए । रामेश्वर काम्बोज
ReplyDeleteभाईसाहब, यह रचनायें प्रीत के गहरे सागर से निकली वो अमिट लहरें हैं जो जब मन के आकाश को छू जाती हैं तो ऊँचाईयाँ भी कृतार्थ हो उठती हैं ....उन्नत ,उत्कृष्ट ....अति उत्तम...बधाइयों के साथ .....
ReplyDeleteज्योत्स्ना प्रदीप
बहुत सुन्दर सुन्दर रचनाएँ. बधाई.
ReplyDeleteअत्यंत भावपूर्ण और बहुत ही सुंदर रचनाएँ हैं भैया। बहुत-बहुत बधाई आपको सुंदर सृजन के लिए।
ReplyDeleteकुछ मन पावन होते हैं।
ReplyDeleteकुछ मन भावन होते हैं
बहुत सुंदर मुक्तक हार्दिक बधाई भैया जी