ज्योत्स्ना प्रदीप
1-सीलन
छतें भी वो ही
अश्रु बहाती हैं
जहाँ रहनेवालों की
आँखों में
किरकिरी हो
गरीबी की ।
-0-
2-दस्तक
बड़ा अजीब
यह शहर लगता है
यहाँ तो लोगों को
दरवाजों की दस्तकों से भी
डर लगता है !
-0-
3-वार
जब कोई
ज़रूरत से ज्यादा
सर नीचा करके
व्यवहार करता है,
याद रखना
साँप झुककर ही
वार करता है ।
-0-
4-घायल
वो पत्ता
सूखा ,टूट गया
घायल है ज़मीं पर
सँभलकर चलना
चीखेगा बहुत
पाँव रखा जो......
-0-
5-भेदभाव
ये आँसू भी
भेदभाव करें
अपनों के लिए अतिवृष्टि
गैरों के लिए आँखों
को
सूखा गाँव करें!!
-0-
6-स्पर्श
रात्रि के हल्के स्पर्श से
झुकाके माथ
पौधा सो गया
मानो कोई अनाथ !
सपने में लिये
माँ का हाथ ।
-0-
वो पत्ता
ReplyDeleteसूखा ,टूट गया
घायल है ज़मीं पर
सँभलकर चलना
चीखेगा बहुत
पाँव रखा जो......
सभी पंक्तियाँ अति सुन्दर...
jyotsana ji apaki likhi sabhi xnikayen vartman ishiti ka chitran karti hui bahut hi achhi likhi hain. badhai
ReplyDelete.
pushpa mehra.
बहुत-बहुत-बहुत.... ही.. सुन्दर सभी क्षणिकाएँ ज्योत्स्ना प्रदीप जी। पढ़कर मन प्रसन्न हो गया। शब्द ही नहीं मिल रहे... क्या कहें। ईश्वर ऐसे ही आपकी लेखनी को समृद्ध बनाये रक्खे !!!
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
विभिन्न भावों -अनुभावों को शब्दों में बांधती यह क्षणिकाएं बहुत अनुपम लगीं | कहीं गहरे छू गईं | धन्यवाद ज्योत्स्ना जी |
ReplyDeleteशशि पाधा
जब कोई
ReplyDeleteज़रूरत से ज्यादा
सर नीचा करके
व्यवहार करता है,
याद रखना
साँप झुककर ही
वार करता है ।
bade hi maulik bhaav hai jyotsana ji.....badhai
सुंदर भावों से ओत प्रीत क्षणिकाएं है बधाई ज्योत्स्ना जी |
ReplyDeleteभावों के गहरे सागर से अनमोल मोती निकाले है आपने ...एक से बढ़कर एक ...!!
ReplyDeleteइतने सुन्दर अलंकरणों से माँ क्यों न प्रसन्न हों ...
"स्पर्श" ,"घायल" अनुपम हैं ...हार्दिक बधाई !!
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
जब कोई
ReplyDeleteज़रूरत से ज्यादा
सर नीचा करके
व्यवहार करता है,
याद रखना
साँप झुककर ही
वार करता है ।
एक बहुत कटु-सत्य दर्शाया गया है इस क्षणिका में...ऐसे आस्तीन के सांपों से हम में से हर किसी का कभी न कभी पाला पड़ता ही रहा है...|
सभी क्षणिकाएँ बहुत भाई...बधाई...|
aap sabhi ka hriday bohot hi udaar hai...aap swayam vidvaan hokar swayam mera hausala badhate hai uske liye hriday tal se badhai ...:) :) :) :) <3 <3
ReplyDeleteवो पत्ता
ReplyDeleteसूखा ,टूट गया
घायल है ज़मीं पर
सँभलकर चलना
चीखेगा बहुत
bahut khoob kaha aapne sunder
rachana
वो पत्ता
ReplyDeleteसूखा ,टूट गया
घायल है ज़मीं पर
सँभलकर चलना
चीखेगा बहुत
पाँव रखा जो......
yeh rachna badi hi masoom v marmik soch liye hai..jyotsna pradeep ji ko badhai.
rachnaji,shivika ji dil se aabhaar.....utsaah gatimaan karne ke liye ...
ReplyDeletebahut sundar rachna .....................badhai
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