रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
हमने लिखा-
चिड़िया उड़ो तुम
तोड़ पिंजरा
नाप लो ये गगन
छू लो क्षितिज !
पार न कर सके
लेकिन हम
अपना ही आँगन ।
लाखों बातें कीं
लाखों बातें कीं
तोड़कर पहाड़
नदी लाने की,
तोड़ न सके कभी
जर्जर ताला
सदियों से था जड़ा
रूढ़ियों पर,
हमारी सोच पर
डरता मन ;
टूट न जाए कहीं
ये घुन-खाया
दरवाज़ा पल में
जो छुपाए है
कमज़ोर हाथों को-
उन हाथों को
जो कभी नहीं बढ़े
मुक्ति पाने को
पिंजरों में बन्द ही
लिखते रहे
सदा मुक्ति का गीत
होकर भयभीत ।
-0-
चौका के रूप में आपकी यह कविता श्रेष्ठ कविताओं में गिनी जाएगी, आप अगर इसे चौका न भी कहें तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता। कविता अपने स्वरूप, भाव, विचार और संवेदना में इतनी उत्कृष्ट है कि यह कविता के हर प्रेमी को गहरे तक छू जाएगी… बधाई भाई साहब…
ReplyDelete्बेह्द शानदार और सशक्त चोका
ReplyDeleteबहुत गहन भावो को दर्शाती रचना..
ReplyDeleteसादर नमन आपकी लेखनी को...
पार न कर सके
ReplyDeleteलेकिन हम
अपना ही आँगन ।waah.....
गीत शब्दों में लिखा जो,
ReplyDeleteवह रहा अब शेष जीना,
मुक्ति की करते प्रतीक्षा,
टिमटिमायी, फिर दिखी ना,
प्रवीण भाई , आपकी इस काव्यमय मधुत टिप्पणी के लेइ बहुत बधाई!!
Deleteyathaarth ka bahut sateek chitran. sadiyon se aisa hota aa raha, sangharsh ke geet ab bhaymukt hokar gaane ka samay aa gaya hai...
ReplyDeleteमुक्ति पाने को
पिंजरों में बन्द ही
लिखते रहे
सदा मुक्ति का गीत
होकर भयभीत ।
man ko udwelit karti rachna ke liye badhai. shubhkaamnaayen Kamboj bhai.
आदरणीय रामेश्वर जी ,
ReplyDeleteये चोका हम सभी में छुपी उस चिड़िया की आवाज़ है जो नीले गगन में उड़ना चाहती है ...बिन पंखों के
लेकिन हमने उसे बन्द कर रखा है |
कमाल का लेखन है आपका .....इतनी बड़ी बात बहुत ही सहज ढंग से कह भी दी ..बिन आवाज किए ....लेकिन इसको सुनते ही मन में बेकाबू सा शोर सुनाई देने लगा है ....जो लेखक के लेखन की सफलता की निशानी है |
आपकी कलम को नमन !
हरदीप
Behtarin rachna.
ReplyDeletebilkul satik rachna...man ki deewaro ko paar pana sach me namumkin sa lagta hai....iske paar hi azadi hai...
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा रचना....हिम पंछी उन्मुक्त गगन के..पिंजरबद्ध ना गा पाएँगे...
ReplyDeleteगजब रचना ...सराहनीय|
ReplyDeleteपंछियों के माध्यम से संदेश देती रचना ...रूढ़ियों को तोड़ना है तो मात्र नारों से काम नहीं चलेगा ... गहन तथ्य छिपा है इस रचना में ॰
ReplyDeleteअंतर्स्पर्शी रचना |बेह्द गहन |
ReplyDeleteआपकी ये रचना अन्तर्मन में गहरी कहीं बैठ गई है आप इस रचना को किसी अच्छी पत्रिका में जरूर दें ये एकदम हटकर रचना निकली है आपके मन से।बहुत सारी शुभकामनाओं के साथ।
ReplyDeleteहमने लिखा-
ReplyDeleteचिड़िया उड़ो तुम
तोड़ पिंजरा
नाप लो ये गगन
छू लो क्षितिज !
पार न कर सके
लेकिन हम
अपना ही आँगन
पिंजरों में बन्द लिखते रहे मुक्ति का गीत...
सुंदर ... अति सुंदर .... बहुत प्रभावशाली ढंग से जीवन का विरोधाभास व्यक्त हुआ है... मै सुभाष नीरव जी की टिप्पणी से पूरी तरह सहमत हूँ... "कविता अपने स्वरूप, भाव, विचार और संवेदना में इतनी उत्कृष्ट है कि कविता के हर प्रेमी को गहरे तक छू जाएगी"…
यह अपने आप में बेमिसाल रचना साहित्य की एक धरोहर है, जिसे जो पढ़ेगा सराहे बिना रह ही नहीं सकेगा....
सादर
मंजु