पथ के साथी

Tuesday, December 18, 2012

भूले-बिसरे शब्द



रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
1
सगे ही छोड़कर आए
हमें सुनसान जंगल में ।
पराया था जिन्हें समझा
उन्हीं से प्यार पाया है ।
2
जीवन में कुछ मिल जाते हैं
यूँ ही चलते-चलते  ।
जैसे मिलती धूप सुहानी
सूरज ढलते -ढलते ।
-0-

15 comments:

  1. यही जीवन दर्शन है .....सच और सिर्फ सच!

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  2. बहुत सुंदर रचना ! दिल को छू लिया भाई साहब !
    ~अक्सर देखा है..
    वही दिल को चोट पहुँचाते हैं...
    जो हमारे दिल के बहुत क़रीब होते हैं...~
    -सादर !!!

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  3. उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

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  4. जीवन के दोनों पक्ष ....कुछ खोना कुछ पाना ...बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...!!
    सादर ...ज्योत्स्ना शर्मा

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    1. kamboj ji bahut umda abhivyati , badhai aapko

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  5. जीवन का यथार्थ दिखाती सुंदर रचनाएँ।

    "जीवन में कुछ मिल जाते हैं
    यूँ ही चलते-चलते ।
    जैसे मिलती धूप सुहानी
    सूरज ढलते -ढलते ।"

    यह तो लाजवाब !

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  6. अकल्पित रचना बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...बहुत बधाई
    सादर

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

    जीवन में कुछ मिल जाते हैं
    यूँ ही चलते-चलते ।
    जैसे मिलती धूप सुहानी
    सूरज ढलते -ढलते ।...सादर बधाई !!

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  8. बहुत सुंदर लिखा है ...!!

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  9. संवेदनापूर्ण अभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.

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  10. bhaiya in panktiyon me jeevan ka vo darshan hai jo shayad sab ko nahi samjh aaya hai bahut gahri baten hain
    badhai
    rachana

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  11. जीवन में कुछ मिल जाते हैं
    यूँ ही चलते-चलते ।
    जैसे मिलती धूप सुहानी
    सूरज ढलते -ढलते ।

    bahut pyari abhivayakti hai bahut2 badhai...

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  12. यही जीवन की सच्चाई है...|
    इन सुन्दर पंक्तियों के लिए बधाई...|
    प्रियंका

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