सीमा स्मृति
कल देर रात
मोहब्बत,शबाब,शराब के
जाम छलके होगें
आर्केस्ट्रा की धुन पर,
थिरकते कदमों,
तालियों की गरगराहट, के बीच
नव दम्पती नव सूत्र में बँध
वर्तमान पर भविष्य की नींव,
रख रहे होंगे
तभी
इतनी सुबह
शामियाने के उस पिछले
कोने में,
चावल के ढेर
पनीर के चन्द टुकडे
अधखाए भल्ले
फैली चटनी
सूखी होती पूरियों के
पिज्जा के टुकडे़,नूडल की गंध
ऊपर भिनभिनाती मक्खियॉं
टेडी दुम वाले कुत्ते
और
कागज बीनते लड़कों का झु़ड़
अपने अपने हिस्से
बटोरते सुना रहे हैं
कल रात की अनदेखी कहानी ।
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कड़वी सच्चाई को कहती कहानी ....
ReplyDeleteबेहद मार्मिक रचना। आपकी ये 'काहानी' मन को छु गयी।
ReplyDeleteमेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है बेतुकी खुशियाँ
लाइमलाइट के पीछे की परछाईं....
ReplyDeleteबहुत सुंदर बिल्कुल दिल को छूने वाली ...बधाई .आप भी पधारो
ReplyDeletehttp://pankajkrsah.blogspot.com
स्वागत है
यही कहानी के अन्त में होता है।
ReplyDeleteमार्मिक ...!!
ReplyDeletesacchaaee chitrit kartee rachana asar chod gayee....
ReplyDeleteकटु हृदयविदारक सत्य .....
ReplyDeleteवाह!क्या खूब,'यथार्थ' का चित्र है !
ReplyDeleteसचमुच 'देश की दशा' विचित्र है !!
'विसंगति',खोजने कहाँ जाओगे-
यहाँ है,वहाँ है, सर्वत्र है ||
ये वो सच्चाई है जो हम सब जानते हैं....करते भी हैं कुछ पर..भारी जनसंख्या और असमान विकास के आगे प्रयास कम पड़ जाते हैं।
ReplyDeleteआज के कटु यथार्थ को उद्घाटित करती प्रभावी रचना ....!!
ReplyDeleteबहुत बधाई आपको ...
सादर ..ज्योत्स्ना शर्मा
sabdon ki dor se jita jaagta chitran bahut khub baandha hai aapne...meri bahut2 badhai..
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