पथ के साथी

Thursday, September 27, 2012

वहाँ मुझे पाओगे-(चोका)



-रामेश्वर काम्बोज हिमांशु

पुकारोगे जो
मैं ठहर जाऊँगा
तुम्हें छोड़ मैं
भला कहाँ जाऊँगा
तुम्हारे लिए
पलक -पाँवड़े मैं
बिछाता रहा
गुनगुनाता रहा
आज भी वहीं
मैं नज़र आऊँगा
दूर हो तुम
दिल हारना  नहीं
दूरियाँ नहीं
दूर करेंगी हमें
सिन्धु या गिरि
राह रोकते नहीं
चलते रहो
कभी टोकते नहीं
रोक न सका
पखेरू की उड़ान
कोई शिखर
सागर की लहरें
थपेड़े बनीं
ज़िन्दगी में इनसे
हमारी ठनी
इन सबको चीर
पार जाऊँगा 
ये न समझो कभी
हार जाऊँगा
किसी भी मोड़ पर
एक दिन मैं
तुम्हें पा ही जाऊँगा
कहता मन -
मेरे द्वार पे जब
आओगे तुम
दस्तक नहीं कभी
देनी पड़ेगी
कदमों की आहट
दे देगी पता
रात हो या प्रात हो
मेरे द्वार को
सदा खुला पाओगे
गले लग जाओगे
 -0-
 (14 सितम्बर2012)

22 comments:

  1. सहज सुंदर और सरल रचना ...!!

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  2. sari rachnaayen bahut acchi lagi ...thanks ..

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  3. बहुत सुन्दर...मन को छू जाने वाला चोका...खास तौर से ये लाइनें तो बहुत ही उत्साहवर्धक लगी...।
    रोक न सका
    पखेरू की उड़ान
    कोई शिखर
    सागर की लहरें
    थपेड़े बनीं
    ज़िन्दगी में इनसे
    हमारी ठनी
    इन सबको चीर
    पार जाऊँगा ।
    मेरी बधाई और आभार एक अच्छी रचना पढ़वाने का...।
    प्रियंका

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  4. अमिता कौंडल27 September, 2012 19:27

    बहुत सुंदर चौका है बधाई,

    सादर,

    अमिता कौंडल

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  5. अनुपम भाव लिए बहुत ही खूबसूरत चोका ! बधाई !

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  6. शशि पाधा27 September, 2012 20:26

    ज़िन्दगी में इनसे हमारी ठनी
    इन सबको चीर
    पार जाऊँगा ।
    ये न समझो कभी
    हार जाऊँगा
    किसी भी मोड़ पर
    एक दिन मैं
    तुम्हें पा ही जाऊँगा

    सभी सुन्दर , किन्तु यह पंक्तियाँ अति सुन्दर | धन्यवाद

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  7. वाकई खूबसूरत चोका...अनुपम भाव...अनुपम रचना|

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  8. सहज सुन्दर निरुपम चोका....शुभकामनाएं।

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  9. चोका तो अच्छा है ही, आपके कवि का व्यक्तित्व भी इसमें समाविष्ट हो रहा है, जिसमें एक गहरे अपनत्व का भाव-बोध व्याप्त है.

    तुम्हें छोड़ मैं
    भला कहाँ जाऊँगा
    ............
    आज भी वहीं
    मैं नज़र आऊँगा

    ...........और मैं कहूँ- ..... ये गहराई / भला कहाँ पाऊँगा!

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  10. कदमों की आहट
    दे देगी पता
    bhaiya yahi sneh hai yahi sath hai yahi chaht hai .
    bahut sunder bhav pushpon se saja choka
    rachana

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  11. सबसे पहले तो मैं कहना चाहूँगी..... चोका को पेश करने के अंदाज़ के बारे में .....जिस अंदाज़ में ये पेश किया है गया है..... सबको पढ़ने के लिए बुलाता है |
    चोका की शब्दावली की तो बात ही क्या है ....इसका तो कोई मुकाबला हो ही नहीं सकता |
    जिस दिल की गहराई में उतर ये चोका लिखा गया है उसी गहराई में ये पाठक को लेकर चलता है |
    वाह .....क्या कहना .....बिना दस्तक के ही ..कदमों की आहट पाकर इंतजार करने वाले को आपके आने की खबर जब होती है ........तो सोचिए उस घड़ी में आपकी क्या हालत होती होगी ?

    हरदीप

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  12. Vise to ab ye sab likhne ki aavsyakta nahi hai kayoki pahle hi bahut kuch likha ja chuka hai,par mujhe in panktiyon ne bahut prbhavit kiya hai...aapko bahut2 badhai..
    रोक न सका
    पखेरू की उड़ान
    कोई शिखर
    सागर की लहरें
    थपेड़े बनीं
    ज़िन्दगी में इनसे
    हमारी ठनी
    इन सबको चीर
    पार जाऊँगा ।

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  13. बहुत सुन्दर भाव

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  14. सकल उत्साह और ऊर्जा बढ़ाती कविता..

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  15. ज्योत्स्ना शर्मा28 September, 2012 15:51

    ये न समझो कभी
    हार जाऊँगा
    किसी भी मोड़ पर
    एक दिन मैं
    तुम्हें पा ही जाऊँगा
    कहता मन -
    मेरे द्वार पे जब
    आओगे तुम
    दस्तक नहीं कभी
    देनी पड़ेगी
    कदमों की आहट
    दे देगी पता....बहुत गहरी बात को सरलतम शब्दों में कह देना आपकी विशेषता है ...भावों का बिना आहट साकार हो जाना बहुत सुन्दर है ...बहुत बधाई....सादर ज्योत्स्ना

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  16. साहित्य की सम्पूर्णता को लिए हुए सहज , सरल उत्कृष्ट चोका .
    हार्दिक बधाई आपको .

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  17. दस्तक नहीं देनी पड़ेगी ... द्वार खुला रहेगा ... कोमल से एहसास लिए सुंदर चोका

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  18. कोमल भाव लिए बहुत-बहुत
    सुन्दर रचना...
    :-)

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  19. ये न समझो कभी
    हार जाऊँगा
    किसी भी मोड़ पर
    एक दिन मैं
    तुम्हें पा ही जाऊँगा
    कहता मन -
    मेरे द्वार पे जब
    आओगे तुम
    दस्तक नहीं कभी
    देनी पड़ेगी
    कदमों की आहट
    दे देगी पता.. kitna vishwaas.. kitna sambal hai in pankityon mein.. mann gunguna utha.. :)

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  20. काम्बोज भाई,
    बहुत सुन्दर चोका. इस चोका का एक-एक शब्द मन में उतर गया. ये सिर्फ काव्य नहीं आपके मन की भावना है जो सभी साहित्य प्रेमियों के लिए सन्देश दे रही है...

    मेरे द्वार पे जब
    आओगे तुम
    दस्तक नहीं कभी
    देनी पड़ेगी
    कदमों की आहट
    दे देगी पता
    रात हो या प्रात हो
    मेरे द्वार को
    सदा खुला पाओगे
    गले लग जाओगे ।

    आपको पढ़ना सदैव अद्भुत अनुभव देता है. ह्रदय से शुभकामनाएँ.

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  21. मैं आप सभी सुहृदय साथियों का कृतज्ञ हूँ । आप सबका स्नेह मेरे लिए सबसे बड़ा सम्बल है । आपके एक- एक शब्द से अभिभूत हूँ । मेरी लेखनी को आप सबने ऊर्जा प्रदान की है । पुन: सबका आभार !

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