सीमा स्मृति
जिन्दगी करती है सवाल हमसे
क्या है गम
और
है क्या खुशी ?
अतल सागर में
तलशाता है क्यों कोई निधि
प्रश्न, लहरो से उठते हैं निगाहों में
छू कर किनारा
कभी शांत- श्वेत मेघ से
लौट जाते हैं
और
कभी तोड़ डालना चाहते हैं किनारा
कठोर वक्त बन
सोचती हूँ-
उत्तर दूँ या नहीं
खुशी और गम की
कोई सीमा नहीं
हर बदलते क्षण में
ये बंध जाते हैं
प्रश्न करने से पूर्व
और
उत्तर की प्रतीक्षा में
संवेदना के ये ‘साथी’
रंग बदल जाते हैं।
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संवाद बना रहे, प्रश्नों को उत्तर मिलता रहे।
ReplyDeleteगम और खुशी खोजती हुई ....मन की असीम उद्वेलित लहरें .....
ReplyDeleteसुंदर रचना बन पड़ी है ....
भावोत्तेजक और विचारोत्तेजक सर.. एक अपनी सी कविता..
ReplyDeleteकुछ उत्तर यूँ ही प्रतीक्षारत रहते हैं... अच्छी रचना, आभार.
ReplyDeleteऐसे प्रश्नों का जवाब कई बार खोजते रहने से नहीं मिलता और कई बार स्वत ही मिल जाता है ... पर फिर वो भी बदल जाता है ...
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