ओस की तरह (ताँका)
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
हथेली छुए
तुम्हारे गोरे पाँव
नहा गया था
रोम-रोम पल में
गमक उठा मन।
2
समाती गई
साँसों में वो खुशबू
मिटे कलुष
तन बना चन्दन
मन हुआ पावन।
3
तपी थी रेत
भरी दुपहर -सा
जीवन मिला
मिली छूने भर से
शीतल वह छाँव
4
आज मैं जाना-
मन जब पावन
खुशबू भरे
ये मलय पवन
ये तुम्हारे चरन।
-0-
bahut sundar panktiya....
ReplyDeletebahut sundar aur bhaavpurn abhivyakti...
ReplyDeleteआज मैं जाना-
मन जब पावन
खुशबू भरे
ये मलय पवन
ये तुम्हारे चरन।
shubhkaamnaayen.
वाह, अर्थ समेटे मनभावों का..
ReplyDeleteसुंदर अर्थ पूर्ण प्रस्तुती बेहतरीन क्षणिकाएं ,.....
ReplyDeleteनववर्ष 2012 की हार्दिक शुभकामनाए..
--"नये साल की खुशी मनाएं"--
Sundar abhivyakti shabdo ka jadu .... abhar kamboj ji
ReplyDeleteसुंदर रचना......
ReplyDelete--जिन्दगीं--