पथ के साथी

Wednesday, November 9, 2011

मन कोंपल- सा


मन कोंपल- सा
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29 April 2018
00:43

मन कोंपल- सा
पास अगन है।
सूना- सूना
घर -आँगन है।
है विनय यही
अब आ जाओ।
नेह नीर तुम
बरसा जाओ।
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30 April 2018
07:49


भोर हुई
नभ जगा
तम चूर हो गया
मजबूर हो गया।
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09 May 2018
06:17

काम्बोज
1
फूलों सा मन दे दिया,फिर छिड़के अंगार।
तेरी तू ही जानता,क्या लीला करतार।।
2
पल -पल चारों ओर से,बरसे दिनभर  तीर।
ज़हर बुझे थे दे गए, मन को मन भर पीर ।

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13 May 2018
08:48

ताँका
1
तुमसे मिले
हुई हैरत मुझे
कि न था कोई
वह मैं ही था प्रिये
जो खुद से ही मिला ।
2
भेद है कहाँ
सब तुमसे कहा
तुझमें डूबा
विलीन  अहंकार
मै तुम एकाकार।
3
कोई न शब्द
जिसको मैं उचारूँ
तुम्हें पुकारूँ
संज्ञा या सर्वनाम
सबसे परे तुम।
4
रूप से परे
उम्र  का नहीं छोर
कोई न और
हो तुम्हीं  मेरे भाव
बाकी सब अभाव।
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सही क्या और गलत क्या ,
वक़्त ही बतलाएगा।
साथ  आया है न कोई
साथ नहीं जाएगा।।


14 May 2018
08:53
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15 May 2018
23:25

*ज़िन्दगी*

मुस्कुराती है ज़िन्दगी
बारूद के ढेर पर बैठी
बहुत मजबूर है ज़िन्दगी
किसी के सामने रो नहीं सकती
बचा जो धीरज खो नहीं सकती
हरदम कीलें चुभें तो क्या करें
मरने से पहले हम क्यों मरें
कटुताएँ राह में बैठी हुई
न जाने किस बात पर ऐंठी हुईं
पल पल नरक का द्वार खोले
वाणी में घोले हलाहल
घर द्वार पर भारी कोलाहल।


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23 May 2018
22:41

हम तो सिर्फ़ खिलौना भर थे
हम तो सिर्फ़ खिलौना भर थे
इस दुनिया के मेले  में ।
तुम ना मिलते  हम खो जाते
कहीं भीड़ के रेले में।
काम्बोज 23 मई 18
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25 May 2018
11:02

हम जीवन भर इसी तरह  तरह चलते रहे।
सेज काँटों की मिली, करवट बदलते रहे
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काम्बोज
09 June 2018
05:46


घना है वन
तुम नन्हे हिरना
साथ न कोई
घेरे हैं हिंस्र पशु
घर- बाहर
बचकर चलना।
बिखेर रहे
ये मुस्कान भेड़िए
जीभ निकाले
इनसे बचना है
बीच इन्हीं के
नूतन रचना है।
तुम नहीं वो,
जिसे खूनी जबड़े
ग्रास बनालें
वह भी नहीं तुम
जिसको चाहे
बना कथा उछालें।
तुम हो वह-
जिसने मरु सदा
हरे बनाए
आए भारी अंधड़
बाधाएँ लाखों
पर न घबराए।
साथ तुम्हारे
मैं भी हूँ हरदम
न घबराना
उच्च शिखर तक
तुम बढ़ते जाना।
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