कमला निखुर्पा
कान्हा तुम आ जाओ ना
बीत गयी हैं कितनी सदियाँ
बाट जोह रही धुँधली अंखियाँ
यमुना तट पर उसी विटप पर
धुन मुरली की सुनाओ ना।
कान्हा तुम आ जाओ ना।
जनमन का मधुबन सूना है
ब्रज की गलियाँ तुम्हे पुकार रहीं
कालियनाग हैं कदम-कदम पर
ये कालिंदी भी पल-पल सूख रही।
यमुना-तीरे फ़िर ग्वाल-बाल संग
कंदुक-क्रीड़ा दिखाओ ना।
कान्हा तुम आ जाओ ना
भूखा है कब से सखा सुदामा
हैं कंस ने खुशियाँ छीनी हैं,
आज राधिका सहमी -सी है,
दुष्ट पूतना हँसती है।
ग्वाल बाल संग उसी गोकुल में
आकर मटकी तोड़ो ना।
कान्हा तुम आ जाओ ना
हर गली बन गयी इंद्रप्रस्थ
हर चौराहे पर है महाभारत
दुर्योधन ने पहना अभेद कवच
हर अर्जुन हुआ है मोहग्रस्त
पांचजन्य का जयघोष सुना
तुम मोहभंग कर दो ना।
जो भूल चुके इतिहास उन्हें
गीता का ज्ञान सिखा दो ना।
कान्हा तुम आ जाओ ना
-0-
कमला निखुर्पा ,देहरादून
22-08-2011
कमला निखुर्पा जी,
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है|
बधाई,जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ|
वाह सुंदर ...बहुत सुंदर भाव ....
ReplyDeleteजन्माष्टमी पर कमला जी का 'कान्हा' को लेकर लिखा गीत अच्छा लगा। बधाई और जन्माष्टमी की शुभकामनाएं।
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत भावो से रची रचना....
ReplyDeleteवाह ………बहुत सुन्दर और सटीक आह्वान्।
ReplyDeleteहर गली बन गयी इंद्रप्रस्थ
ReplyDeleteहर चौराहे पर है महाभारत
दुर्योधन ने पहना अभेद कवच
हर अर्जुन हुआ है मोहग्रस्त
पांचजन्य का जयघोष सुना
तुम मोहभंग कर दो ना।
sunder geet man bhaya
rachana
भूखा है कब से सखा सुदामा
ReplyDeleteहैं कंस ने खुशियाँ छीनी हैं,
आज राधिका सहमी -सी है,
दुष्ट पूतना हँसती है।
ग्वाल बाल संग उसी गोकुल में
आकर मटकी तोड़ो ना।
कान्हा तुम आ जाओ ना...
बहुत अच्छी रचना . मन को मोह गयी यह रचना प्यारी
बहुत अच्छी रचना . मन को मोह गयी यह रचना प्यारी
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा रचना | साथ में प्रेरक भी |
ReplyDeleteकृपया मेरी भी रचना देखें और ब्लॉग अच्छा लगे तो फोलो करें |
सुनो ऐ सरकार !!
और इस नए ब्लॉग पे भी आयें और फोलो करें |
काव्य का संसार
अब तो आ जाओ कान्हा।
ReplyDeleteअब तो आ जाओ कान्हा बहुत सुंदर भाव बहुत अच्छी रचना लिखा है । बधाई और श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteSUNIL D YADAV
bahut sundar rachna......aur bahut prerak.
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