जन्मः ५ सितंबर लखनऊ में
शिक्षाः स्नातक साइंस, परास्नातक हिन्दी
विधाएँ: बालकथा , कहानी , कविता
रेडियो कवयित्री २००४ से अब तक, रेडियो सलाम नमस्ते और फ़नएशिया पर कविता पाठ, मंच संचालन मनोरंजन (फ्लोरिडा) तथा संगीत में रुचि। रेडियो (ह्यूस्टन) पर भी कविता पाठ।
आजकल डालस (यू.एस.ए) में निवास
[आज के दौर में जो अधिकतम कविताएँ लिखी( रची नहीं) जा रही हैं, वे भावशून्य और प्रभावशून्य ही अधिक हैं ।वास्तविक कविता तो वह है , जिसे रचनाकार अपने प्राणों के स्पर्श से जीवन प्रदान करता है । रचना श्रीवास्तव की अधिकतर कविताएँ पाठक को बहुत गहरे तक उद्वेलित कर देती हैं। उनकी ‘प्यार को जो देख पाते’ इसी तरह की कविता है । रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]
प्यार को जो देख पाते:रचना श्रीवास्तव
भैया ...
काश तुम समझ पाते
पापा की झिड़कियों में था
तुम्हारा ही भला
उनके गुस्से में छुपे
प्यार को जो देख पाते
तो शायद
तुम घर छोड़ कर नहीं जाते
पापा के ठहाकों से
जो गूँजता था घर कभी
आज उनकी
बोली को तरस जाता है
तुम्हारे कमरे मे
बैठे न जाने क्या
देखते रहते हैं
अकेले में कई बार
बातें करते हैं
पापा अब बुझ से गए हैं
उनकी डाँट को
गाँठ बाँध लिया
पर न देखा की
तुम्हारी सफलता को
"मेरे बेटे ने किया है
बेटे को मिला है"
कह के
सब को कई बार बताते थे
तुम्हारे सोने के बाद
तुम्हें कई बार
झाँक आते थे
क्यों नहीं
देखा तुम ने
कि खीर पापा कभी
पूरी कटोरी नहीं खाते थे
तुम्हारी पसंद के
फल लाने
कितनी दूर जाते थे
अपने वेतन पे लिया कर्ज़
तुम्हारी मोटर साईकिल लाने को
काम के बाद भी किया काम
तुम्हें मुझे ऊँची शिक्षा दिलाने को
तुमने उन्हें दिया
मधुमेह, उच्च रक्तचाप,
छुप के रोती
आँखों को मोतिया
ले ली उनकी मुस्कान
उनकी बातें
उनका गर्व से उठा सर
और सम्मान
यदि तुम ये सब जानते
तो शायद नहीं जाते
आ जाओ
इस से पहले
के कहीं देर न हो जाए
पितृ दिवस पर तो पिता को
बेटे का उपहार दे जाओ
तुम आ जाओ…
-00-
bahut sundar...
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteफादर्स डे पर बहुत सुन्दर कविता है रचना जी की। बधाई !
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता।
ReplyDeleterachna ji ki kavita parhkar apni khani KHARONCHyaad aa gayi
ReplyDeletepita ki manahsthiti se lagatar judibeti ne kavita rachi hai
aapne thik hi likha hai likhi gayi nahi rachi gayi kavita hai
rachna ji ke srajan se parichit karane ke liye dhanyavad
sukesh sahni
भावुकतापूर्ण कविता है। पिता को पिता बने बिना नहीं समझा जा सकता--इसमें दो राय नहीं हैं। कवयित्री और सम्पादक, दोनों को बधाई।
ReplyDeleteरचना श्रीवास्तव की पिता पर कविता मात्र कविता नहीं है संबंधों की गहन संवेदना का सहज दस्तावेज है'.पिता' प्रायः इन अधिकारों से वंचित रहे हैं .उसके संघर्ष शील व्यक्तित्व के अहं की सजा भी पिता को मिली है .पिता दिवस पर ही सही संवेदनाओं का गुच्छा जो दुनिया भर के पिताओं के लिए है .रचना जी को बधाई और हिमांशु जी को हार्दिक धन्यवाद.
ReplyDeletebahutsundar dil ko gaharaaee tak chhune vali kavita hai. jo bache maan baap ka dil tod kar ghar chhod kar chale jaate hain unke liye ek sandesh hai yah kavita.
ReplyDeleteमैं रो पड़ा सच मे केवल पढ़ कर, इतना संजीव चित्रण ! ईश्वर आपको खूब लम्बी आयु दे ! बहुत ही सुंदर कविता ! बहुत ही सुंदर !!
ReplyDeletebahut khubsurat likhaa aap ne
ReplyDeletesach kahtaa hun aankhe giilii ho gyi
pdhte ..pdhte ......
bahut acchhi kavita ..man ko chhu
ReplyDeletegyi ..
rachna der se padh par man ke taron ko jakjhor gayi...eak2 shab bahut kareeb laga man ke sach aisa hi hota ha aajkal to..bahut2 bdhai rachnakar ko bhi or kamboj ji ko bhi ..
ReplyDeleteसुन्दर, सार्थक, सटीक , सोद्देश्य रचना--बधाई.
ReplyDeletevery nice... it was so touching.
ReplyDeletebahut sundar rachna...seedhe dil me utar gayi...
ReplyDeletewah. kya baat likhi hai.bahot sundar.
ReplyDeleteaap sabhi ka bahut bahut dhnyavad.
ReplyDeleteaap ke sneh shbad mujhko likhne ki prerna denge .asha hai bhavishya me bhi aap ka shyog isitarh milta rahega.
dhnyavad
rachana
दिल को छू जाने वाली एक खूबसूरत कविता के लिए मेरी बधाई...।
ReplyDeleteप्रियंका गुप्ता
मेरो आँखे भर आई
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