गुलमोहर की छॉंव में
रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
गर्म रेत पर चलकर आए
छाले पड़ गए पॉंव में
आओ पलभर पास में बैठो
गुलमोहर की छॉंव में ।
नयनों की मादकता देखो
गुलमोहर में छाई है
हरी पत्तियों की पलकों में
कलियॉं भी मुस्काईं हैं।
बाहें फैला बुला रहे हैं
हम सबको हर ठॉंव में।
चार बरस पहले जब इनको
रोप –रोप हरसाए थे
कभी दीमक से कभी शीत से
कुछ पौधे मुरझाए थे।
हर मौसम की मार झेल ये
बने बाराती गॉंव में।
सिर पर बॉंधे फूल मुरैठा
सज– धजकर ये आए हैं
मौसम के गर्म थपेड़ों में
जीभर कर मुस्काए हैं।
आओ हम इन सबसे पूछें
कैसे हॅंसे अभाव में।
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