मणिमाला-2
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
1-अनुभव की आँच
ठोस व्यक्तित्व का स्वामी अनुभव की आँच में तपकर और सुदृढ़ हो जाता है ; परन्तु फुसफुस व्यक्तित्व वाले लोग अनुभव की आँच नहीं झेल पाते ;इसीलिए पिंघलकर अस्तित्वहीन जाते हैं ।
2-अनु्भव का मापदण्ड
अनु्भव का मापदण्ड कार्यक्षमता है , समय का अन्तराल नहीं ।सजग व्यक्ति एक साल में जितना सीख लेता है ; उलझे विचारों वाला व्यक्ति बीस साल में भी उतना नहीं सीख पाता है ।
3-पलायनवादी व्यक्ति
पलायनवादी व्यक्ति न दूसरों की बात समझ सकता है और न दूसरों को अपनी बात समझा सकता है। वह कमज़ोर लोगों के सामने गुर्राता है तो दृढ़ लोगों के सामने घिघियाता है ।
4- आत्मप्रशंसा
जो अपनी प्रशंसा स्वयं करता है, उसे दस-बीस लोग मूर्ख न भी समझें तो क्या फ़र्क पड़ता है ।
5-स्वार्थ
स्वार्थ का रेगिस्तान सम्बन्धों की तरलता को सुखाकर ही दम लेता है ।
6-शोभा
जूते पैरों की शोभा बढ़ा सकते हैं, सिर की नहीं ।सिर की शोभा वही बढ़ा सकता है ;जो सबका चहेता होता है ।
7-अनुशासन
अनुशासन आन्तरिक चेतना है। भय के कारण दिखाया गया अनुशासन केवल ढोंग है। व्यवस्था का अंकुश हटते ही भय से अनुशासित लोग कामचोर बनने में पीछे नहीं रहते ।
8-विचार-शक्ति
जो स्वयं किसी बात का निर्णय नहीं ले सकते , उनकी विचार-शक्ति की अकाल मृत्यु हो जाती है और उन्हें हमेशा किसी दूसरे के इशारों पर ही नाचना पड़ता है ।
9- कंगाल
दूसरे के मुँह का कौर छीनकर खानेवाला व्यक्ति भले ही करोड़पति बन जाए ; परन्तु मन से वह कंगाल ही रहता है ।
10-ईमानदारी
यदि किसी की ईमानदारी को परखना है तो उसे बेईमानी करने का अवसर दीजिए । अवसर मिलने पर भी जो ईमानदार बना रहे ;वही सच्चा ईमानदार है ।
[ 4 जनवरी, 1987]
No comments:
Post a Comment