पथ के साथी

Saturday, September 6, 2008

इस दुनिया में



इस दुनिया में
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
धोखे पे धोखा खाने में उम्र निकल गई ।
जब-जब सँभली थी ज़िन्दगी ,तब-तब फिसल गई ॥
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सीधे रास्तों पर चलना बहुत कठिन है ।
बर्फ़ के घरों में केवल बची अगन है ॥
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विषधर के काटने पर बचना नहीं है मुश्किल ।
ये आदमी जब काटता तो इलाज़ कौन करे ।।
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हो धरती पर बिछौना, मिले दो जून रोटी ।
इसके सिवा या रब चाहता नहीं मै कुछ भी॥
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ज़न्नत का क्या करूँगा ,मैं जोगी इस दुनिया में ।
शिशु की मुस्कान मुझे तो लगती अरदास जैसी ॥
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ग़ुनहगार बन गए हों,काज़ी जिस शहर में।
इंसाफ का भरोसा कैसे यहाँ करोगे ।
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1 comment:

  1. बहुत उम्दा!!


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    -समीर लाल
    -उड़न तश्तरी

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