पथ के साथी

Friday, September 12, 2008

बिदाई गीत -1


बिदाई गीत -1
हेरी मेरा लम्बा सहेलियों का साथ
कि जिया न करै मेरा जाणै नै ।
हेरी मैं आई ससुर दरबार
सासड़ तो आई मुझै तारण नै
 हेरी मैंने मुड़-मुड़ दाबे री पाँव
कि सीस न दिया उस बैरण नै ।
हेरी मैंन्नै  पिस्या धड़ी भर चून
कि पीस लिया निरणों बासी नै
 हेरी मेरी सासू बड़ी चकचाल
रोट्टी तो धर आई ताळे  मैं
हेरी मैंन्नै छोटी नणद ली साथ
चढ़ गई पिया की अटारी हो ।
'हे जी हमैं क्यूँ लाए थे निरभाग
रोट्टी न मिलै थारै खाणे नै।'
'हेरी तौं चुप रहो मेरी नार
बरफ़ी तो ल्याया तेरे खाणे नै'
हेरी मेरी नीचे से बोली सास
बहू नै सिर पै बठ्या रह्या हो !  

'हेरी तू चुप रो मेरी माँ
घणे दिन रहली अकेली हो।'
बेट्टा ऐसे न बोल्लै तू बोल
बड़ा दुख ठाया तेरे होणे नै
हेरी अम्मा खाई थी सूँठ जवायण
बड़ी मस्ताई मेरे होणै नै ।

2 comments:

  1. सहज साहित्य विशेषकर लोकगीत लुप्त है| आपकी पहल ... क्या कहूँ!!! कृपया अन्य प्रकार भी प्रकाशित करें| बधाई!

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