कितनी बड़ी धरती ,
बड़ा आकाश है !
बाँट दूँ वह सब ,
जो मेरे पास है ।
बहुत दिया जग ने
मैंने दिया कम ।
कैसे चुकाऊँ कर्ज़
इसी का है ग़म ।
अपने या पराए कौन ,
यह आभास है ।
…………
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
19मार्च 07