पथ के साथी
Sunday, April 21, 2013
Tuesday, April 9, 2013
कहाँ विश्राम लिखा !( नव संवत्सर पर विशेष)
डॉ•ज्योत्स्ना शर्मा
सुन सखी ! कहाँ विश्राम लिखा !
मैंने तो आठों याम लिखा
।
पथ पर कंटक, चलना होगा,
अँधियारों में जलना होगा ।
मन- मरुभूमि सरसाने को
हिमखंडों- सा, गलना होगा ।
शुभ, नव संवत्सर हो सदैव ,
संकल्प यही सत्काम लिखा।।
केवल जीने की चाह नहीं ,
भरनी मुझको अब आह नहीं ।
फूल और कलियाँ मुस्काएँ
गूँजे न कोई कराह कहीं ।
नव आगत तेरे स्वागत में
पल का प्यारा पैगाम लिखा ।।
समय मिलेगा फिर बाँचेगा
मेरी भी कापी जाँचेगा।
रहे हैं कितने प्रश्न अधूरे ;
कितने उत्तर सही हैं पूरे ।
जीवन के खाली पन्नों पर -
साँसों का बस संग्राम लिखा ।।
मैंने तो आठों याम लिखा
,
सुन सख! कहाँ विश्राम लिखा !
-0-
Thursday, April 4, 2013
साँसों के हस्ताक्षर
डॉ अनीता कपूर
हर एक पल पर अंकित कर दें
साँसों के हस्ताक्षर
परिवर्तन कहीं हमारे चिह्नों
पर
स्याही न फेर दे
साथ ही
जिंदगी के दस्तावेजों पर
अमिट लिपि में अंकित कर दे
अपने अंधेरे लम्हों के स्याह हस्ताक्षर
कल को कहीं हमारी आगामी पीढ़ी
भुला न दे हमारी चिन्मयता
चेतना लिपियाँ
प्रतिलिपियाँ….
भौतिक आकार मूर्तियां मिट जाने पर भी
जीवित रहे हमारे हस्ताक्षर
खोजने के लिए
जीवित रहें हमारे हस्ताक्षर
कहीं हमारा इतिहास
हम तक ही सीमित न रह जाये
इसीलिये आओ
प्रकृति के कण-कण
में
सम्पूर्ण सृष्टि में
चैतन्य राग भर दें
अपनी छवि अंकित कर दें
दुनिया की भीड़ में खुद को
शामिल न करें।
भविष्य की याद हमें स्वार्थी बना कर
आज ही पाना चाहती है
अपना अधिकार
न हम गलत है, न
हमारे सिद्धांत
फिर भी
स्वार्थी कहला कर नहीं लेना चाहते
अपना अधिकार
आओ
अंकित कर दें
हर पल पर
अपनी साँसों के हस्ताक्षर ।
-0-
Wednesday, April 3, 2013
अक्सर
अनिता
ललित
1
रिश्तों के गहरे मंथन में
उलझी जब भी मैं धारों में ...
घुट-घुट गईं साँसें मेरी,
छलकीं.... अश्कों की कुछ बूँदें..
और नीलकंठ बन गई मैं ...
अपनों की दुनिया में .... अक्सर .....
2
जीवन के गहरे अँधेरों को..
ना मिटा सके जब... चँदा-तारे भी...
बनकर मशाल खुद जली मैं...
और राहें अपनी ढूँढ़ीं मैनें... अक्सर.....
3.
कई बार...अपने आँगन में...
जब दीया जलाया है मैनें,
संग उसके....खुद को भी जलाया है मैनें...
और खुद ही... अपनी राख बटोरी मैनें....अक्सर...
4.
तमन्नाओं के सहरा में भटकते हुए...
ऐसा भी हुआ कई बार....
थक कर जब भी बैठे हम.....,
खुद आप ही... गंगा-जमुना बने हम.....अक्सर...
-0-
इनकी अन्य कविताएँ इसलिंक पर भी पढ़ी जा सकती हैं।
Tuesday, March 26, 2013
फागुन की झोली से
1-रचना श्रीवास्तव
फागुन की झोली से
उड़ने लगे रंग
मौसम के भाल पर
इन्द्रधनुष चमके
गलियों और चौबारों के
मुख भी दमके
चूड़ी कहे साजन से
मै भी चलूँ संग ।
पानी में घुलने लगे
टेसू के फूल
नटखट उड़ाते चलें
पाँवो से घूल
लोटे में घोल रहे
बाबा आज भंग ।
सज गई रसोई आज
पकवान चहके
हर घर मुस्काते चूल्हे
हौले से दहके
गोपी कहे कान्हा से
न करो मोहे तंग ।
उड़ने लगे रंग
मौसम के भाल पर
इन्द्रधनुष चमके
गलियों और चौबारों के
मुख भी दमके
चूड़ी कहे साजन से
मै भी चलूँ संग ।
पानी में घुलने लगे
टेसू के फूल
नटखट उड़ाते चलें
पाँवो से घूल
लोटे में घोल रहे
बाबा आज भंग ।
सज गई रसोई आज
पकवान चहके
हर घर मुस्काते चूल्हे
हौले से दहके
गोपी कहे कान्हा से
न करो मोहे तंग ।
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2-अनिता ललित
पूनम के चाँद पर.. आया निखार,
आया फाल्गुन आया.. आया होली का त्योहार !
नीले, पीले ,लाल, गुलाबी...रंगों की बौछार,
खुशबू टेसू के फूलों की...लाई संग बहार...!
दिल में उमंग उठी ... महकी बयार
अँखियाँ छलकाए देखो ...प्रीत-उपहार !
भूलो सभी बैर, मिटे गर्द-गुबार
भर पिचकारी मारो... नेह अपार !
फुलवारी रंगों की.. साथी फुहार
एक रंग रंगे ... आज हुए एकसार !
रंग-रंगोली हो या दीप-दीपावली...
दिल यही बोले...जब हों साथ हमजोली...
तुम हो तो....
हर रात दीवाली
हर दिन अपनी होली है....
-0-
आया फाल्गुन आया.. आया होली का त्योहार !
नीले, पीले ,लाल, गुलाबी...रंगों की बौछार,
खुशबू टेसू के फूलों की...लाई संग बहार...!
दिल में उमंग उठी ... महकी बयार
अँखियाँ छलकाए देखो ...प्रीत-उपहार !
भूलो सभी बैर, मिटे गर्द-गुबार
भर पिचकारी मारो... नेह अपार !
फुलवारी रंगों की.. साथी फुहार
एक रंग रंगे ... आज हुए एकसार !
रंग-रंगोली हो या दीप-दीपावली...
दिल यही बोले...जब हों साथ हमजोली...
तुम हो तो....
हर रात दीवाली
हर दिन अपनी होली है....
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अनुभूति में डॉ ज्योत्स्ना शर्मा के दोहे पढ़ने के लिए
-0-
दोहे :-डॉ सरस्वती माथुर
1
रिश्तों में कुछ दूरियाँ, होली कम कर जाय
मिलते हैं नजदीक से, प्रेम पनपता जाय !
2
जग-आँगन में गूँजती, फागुन की पदचाप
कहीं फाग के गीत हैं, कहीं चंग पर थाप !
रिश्तों में कुछ दूरियाँ, होली कम कर जाय
मिलते हैं नजदीक से, प्रेम पनपता जाय !
2
जग-आँगन में गूँजती, फागुन की पदचाप
कहीं फाग के गीत हैं, कहीं चंग पर थाप !
3
फागुन गाए कान में, होली
वाले राग
साजन की पिचकारियाँ, बुझे न मन की आग !
साजन की पिचकारियाँ, बुझे न मन की आग !
4
राधा-कान्हा साथ में, मन में आस अनंत
नाच रहीं हैं गोपियाँ, झूमें फाग दिगंत !
5
साजन की बरजोरियाँ, प्रीत-प्रेम के रंग
भीग रही हैं गोरियाँ, नैना बान-अनंग !
राधा-कान्हा साथ में, मन में आस अनंत
नाच रहीं हैं गोपियाँ, झूमें फाग दिगंत !
5
साजन की बरजोरियाँ, प्रीत-प्रेम के रंग
भीग रही हैं गोरियाँ, नैना बान-अनंग !
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Sunday, March 24, 2013
सभी दोस्तों को होली की शुभकामनाएँ
आई
रे होली
कमला निखुर्पा
फागुन संग इतरा के आई है होली सर र र र चुनरी लहराए रे होली
सरसों भी शरमा के झुक झुक जाए
खिलखिला रही वो देखो टेसू की डाली ।
फागुन संग इतरा के आई रे होली ।
अमुआ की डाली पे
फुदक-फुदक
कानों में कुहुक
गीत गाए है होली ।
इंद्रधनुष उतरा
गगन से धरा पे
सतरंगी झूले पे
झूल रही होली ।
फागुन संग इतरा
के आई रे होली ।
खन खन खनकी गोरे हाथों की चूड़ियाँपिचकारी में रंग भर लाई रे होली ।
अखियाँ अबीर, गाल हुए हैं गुलाल आज
भंग की तरंग संग लाई है होली ।
फागुन संग इतरा के आई है होली ।
गलियाँ चौबारे
बने ब्रज – बरसाने
घर से निकल
चले कुंवर कन्हाई
ढोलक की थाप
सुन गूंजे मृदंग धुन
संग चली गीतों
की धुन अलबेली ।
फागुन संग
इतरा के आई रे होली ।
इंद्र धनुष
उतरा गगन से धरा पे
सतरंगी झूले
पे झूल रही होली ।
Saturday, March 23, 2013
नन्ही-सी डायरी
- कमला निखुर्पा

मुझे मिली,
नन्ही- सी डायरी
मेरी मुनिया की ।
डायरी बचपन की दुनिया की ।
रंग- बिरंगे स्टिकरों में
झाँकते -मुस्कराते
नन्हे मिकी, मिनी और बार्बी ।
हर पन्ने में
नन्हे हाथों ने उगाई थी
रंगीन फूलों की कितनी सारी बगिया ।
कहीं ऊँचे पहाड़ों से झाँकता सूरज
कहीं दूर पेड़ों के उस पार
उड़ते पंछी
मानो अभी कानों में चहचहाकर फुर्र हुए हों ।
नन्हीं उँगलियों ने लिखी थी
हर दिन की कहानी ।
हँसने की ,रोने की
पाने की ,खोने की
रूठने औ बिछड़ने की कहानी ..
जाने कितनी कहानियाँ कह रहे थे
इन्द्रधनुषी रंगों से सजे शब्द ।
“ममा जब से गई हो तुम
मुझे अच्छा नहीं लगता कुछ भी
तुम मेरे साथ क्यों नहीं हो
कब आओगी तुम ?
मेरे लिए क्या लाओगी तुम ?”
तेरी नन्ही -सी उँगली थाम चलते-चलते
दिन कितनी जल्दी जल्दी बीते ...
अपनी मुनिया हो गई पराई
टप से गिरे आँखों से मोती
पल में फिर पलकें हुई भारी ।
तेरी चीजों में ढूँढते -ढूँढते तुझे
जाने कितने बरस पीछे चली आई ।
आज नन्ही- सी तेरी डायरी में लिखी है मैंने भी
आँसुओं से डुबोकर अपनी पलकें
“बिटिया जब से गई हो तुम
मुझे भी अच्छा नहीं लगता कुछ भी
कब आओगी तुम ?”
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