- कमला निखुर्पा
मुझे मिली,
नन्ही- सी डायरी
मेरी मुनिया की ।
डायरी बचपन की दुनिया की ।
रंग- बिरंगे स्टिकरों में
झाँकते -मुस्कराते
नन्हे मिकी, मिनी और बार्बी ।
हर पन्ने में
नन्हे हाथों ने उगाई थी
रंगीन फूलों की कितनी सारी बगिया ।
कहीं ऊँचे पहाड़ों से झाँकता सूरज
कहीं दूर पेड़ों के उस पार
उड़ते पंछी
मानो अभी कानों में चहचहाकर फुर्र हुए हों ।
नन्हीं उँगलियों ने लिखी थी
हर दिन की कहानी ।
हँसने की ,रोने की
पाने की ,खोने की
रूठने औ बिछड़ने की कहानी ..
जाने कितनी कहानियाँ कह रहे थे
इन्द्रधनुषी रंगों से सजे शब्द ।
“ममा जब से गई हो तुम
मुझे अच्छा नहीं लगता कुछ भी
तुम मेरे साथ क्यों नहीं हो
कब आओगी तुम ?
मेरे लिए क्या लाओगी तुम ?”
तेरी नन्ही -सी उँगली थाम चलते-चलते
दिन कितनी जल्दी जल्दी बीते ...
अपनी मुनिया हो गई पराई
टप से गिरे आँखों से मोती
पल में फिर पलकें हुई भारी ।
तेरी चीजों में ढूँढते -ढूँढते तुझे
जाने कितने बरस पीछे चली आई ।
आज नन्ही- सी तेरी डायरी में लिखी है मैंने भी
आँसुओं से डुबोकर अपनी पलकें
“बिटिया जब से गई हो तुम
मुझे भी अच्छा नहीं लगता कुछ भी
कब आओगी तुम ?”
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बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति है...मार्मिकता से भरी...|
ReplyDeleteइस सुन्दर कविता के लिए बधाई...|
प्रियंका
सुन्दर जज़्बाती रचना। कमला जी बधाई।
ReplyDeleteबड़ा ही प्यारा नाता है, माँ बिटिया का..
ReplyDeleteवाह! बहुत ख़ूब! होली की हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteआँखें भिगो गयी...आपकी रचना...कमला जी !
ReplyDeleteबेटियाँ ऐसे ही ख़यालों में बसी रहतीं हैं.....हरदम...
~सादर!!!
Bahut bhavpurn rachna...hardik badhai..
ReplyDeleteनन्हीं उँगलियों ने लिखी थी
ReplyDeleteहर दिन की कहानी ।
हँसने की ,रोने की
पाने की ,खोने की
रूठने औ बिछड़ने की कहानी ..
जाने कितनी कहानियाँ कह रहे थे
इन्द्रधनुषी रंगों से सजे शब्द ।
“ममा जब से गई हो तुम
मुझे अच्छा नहीं लगता कुछ भी
तुम मेरे साथ क्यों नहीं हो
कब आओगी तुम ?
bahut sundar bhavuk karti huyi panktiyan. kitne saral shabdon me aapne bhavnaon ka saagar hi udel diya hai is rachna me .
Kamla ji aapki in panktiyon ne mujhe meri beti Ela ki likhi huyi e-mails ki yaad dila di... wo aise hi mujhe roj likha karti thi jab mujhe use California me hi chhodkar Bhaarat jaana pada tha.
“ममा जब से गई हो तुम
मुझे अच्छा नहीं लगता कुछ भी
तुम मेरे साथ क्यों नहीं हो
कब आओगी तुम ?
आपको रचना भाई ... बहुत बहुत धन्यवाद |
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