पथ के साथी

Friday, July 25, 2025

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 मन- आँगन झंकार

शीला मिश्रा



आया है सावन , है मनभावन, बहने लगी बयार।
बूँदों से सजती, न्यारी धरती, टिपटिप की है धार।।
नदियाँ है हरसे,उपवन सरसे, पुलकित है संसार ।
पीहू की गुनगुन, प्यारी सी धुन, मन आँगन झंकार।।

बूँदों की छन-छन, समीर सनसन, हुई सुहानी भोर ।
कोयल मतवाली, छटा निराली, थिरक रहा है मोर।।
सजनी हरषा , कजरी गा, मन को भाये शोर।
सब झूला झूलें ,नाचें झूमें, धूम मची  चहुँ ओर।।

है चुनरी धानी, रिमझिम पानी, धरा करे सिंगार।
भीगा है आँगन,भीग रहा मन, छलके उर उद्गार।।
प्रियतम से दूरी, हिय मजबूरी, ताके नैना द्वार।
कहते हो कल कल, बीता पल पल, रुके न अश्रुधार।।

सब ढोलक लाएँ,साज सजाएँ, गाएँ मीठा गीत।
भौंरे की गुनगुन, चूड़ी छनछन, छेड़े है संगीत।।
चुटकी लें सखियाँ, मीठी सुधियाँ, जागे मन में प्रीत।
पायल की रुनझुन,कहती सुनसुन,आओ जल्दी मीत।।


बी-4,सेक्टर-2, रॉयल रेसीडेंसीशाहपुरा थाने के पास, बावड़ियाँलाँ, भोपाल (म.प्र.)-462039 

मोबा-9977655565

6 comments:

  1. वाह!
    अद्भुत..👏👏

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  2. हार्दिक आभार

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  3. सावन के उल्लास का बहुत सुंदर चित्रण। हार्दिक बधाई आपको।

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    1. हार्दिक आभार

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  4. बहुत सुंदर
    सावन का सजीव चित्रण। उम्दा कविता।सुदर्शन रत्नाकर

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  5. हार्दिक आभार

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