मुक्तक
डॉ. सुरंगमा यादव
1.
मिले तूफान राहों में, हमें पर रोक ना पाए
कभी इरादों की स्याही, समन्दर टोक ना पाए।
जो जुनूँ का इक दरिया हमारे दिल में बहता है
लाख सूरज तपे लेकिन, उसे वह सोख ना
पाए॥
2.
कोई मौसम, कोई रस्ता, हमें बस चलते जाना है
दिखाए व़क्त अग़र तेवर, नहीं इक आँसू बहाना है।
पसारे भुजाएँ कब रास्ते ये हम सबको बुलाते हैं
अगर पाना है मंज़िल तो क़दम
ख़ुद तुमको बढ़ाना है॥
3.
सजे दीपक के संग ज्योति तब दीपक सुहाता है
हो जब अक्षत-संग रोली तभी टीका भी भाता है।
है नारी प्यार की मूरत, बिन उसके कहाँ घर है
बिन मूरत के मंदिर भी कहाँ मंदिर कहाता है॥
4.
है नारी- मन तपोवन-सा, प्रेम-करुणा लुटाता है
जो करता मान नारी का, वही सम्मान पाता है।
बिछाकर राह में काँटे क्यों परखते बल तुम उसका -
है वही काली, वहीं लक्ष्मी, वही बुद्धि प्रदाता है॥
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नारी विमर्श पर सशक्त मुक्तक रचना हेतु बधाई.
ReplyDeleteनारी विमर्श पर सशक्त मुक्तक रचना हेतु बधाई.
ReplyDelete-दिनेश चन्द्र पाण्डेय
बहुत ही सुन्दर, आपको बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर, साहस से समायुक्त। हार्दिक बधाई 🌷👍🏾
ReplyDelete- जतन से संवारी सदा बोलती है
- कि बनकर दुधारी कलम बोलती है
- जहां लोग अन्याय पर मौन रहते
- वहां पर हमारी कलम बोलती है
बहुत सुंदर, आपको भी हार्दिक शुभकामनाएं 💐
ReplyDeleteनारी विमर्श पर बहुत सुंदर, प्रभावशाली मुक्तक। हार्दिक बधाई ।सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteबहुत सुंदर, सशक्त मुक्तक...हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteमहिला दिवस पर रचे सटीक और सशक्त मुक्तक हैं सुरंगमा जी , हार्दिक बधाई । सविता अग्रवाल “ सवि “
ReplyDeleteनारी विमर्श पर सशक्त उद्गार , खूूबसूरत अभिव्यक्ति के लिए सुरंगमा जी को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteमहिला दिवस पर महिलाओं पर शानदार सृजन के लिए डॉ सुरँगमा को बहुत-बहुत बधाई 💐
ReplyDeleteमहिला दिवस पर बहुत सुन्दर मुक्तक. बधाई सुरंगमा जी.
ReplyDeleteसुंदर सृजन
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