पथ के साथी

Saturday, August 17, 2024

1427

1-सावन में फोन/ सुरभि डागर 

 


साँवली बदली छम- छम 

सावन में बरस उठी 

कहीं आती ताज़े घेवर की

 मीठी सुगन्ध से महकते

गलियारे।

तभी बज उठी मेरे फोन की घंटी-

चली आओ लाडो,

झूमते सावन में 

आ गई सब सखियाँ तुम्हारी,

है मेरा आँगन सूना सावन में 

तुम्हारे बिन लाड़ली 

खनकाओ मेरे आँगन में

हरे काँच की चूड़ियाँ

मेहंदी की सुगंध से महका दो 

बाबुल की बगिया।

पील में खाली पड़े हैं 

रेशम डोर के झूले 

ताक रहे राह तुम्हारे आने की

पंचरंगी  बूटेदार साड़ी पहन ले

आओ सावन को मेरे भवन में 

दादी गा रही हैं सावन के मधुर गीत 

बेटी झूलन को चली जाओ 

हिंडोला झालर का ,चंदन की पटली धरी 

बटी धरी है रेशम डोर ,

हिंडोला झालर का।

-0-

2-अर्चना राय


 

1-बेटी

 

बधाई हो! 

आपके घर  बेटी आई है। 

सुनकर दिल कुछ

दरक- सा गया

मन के गहरे बैठी पैठ

 कि बेटे संपत्ति और.. 

 बेटियाँ जिम्मेदारी

होती हैं। 

सोच मन कसक- सा उठा

 

 मान उसे अपनी जिम्मेदारी 

 बस निभाता रहा... 

छूना चाहती थी आसमान

और मैं उसे धरती पर 

बाँधने में लगा रहा। 

पर तोड़ हर जंजीर

उसे तो उड़ना था। 

उड़ी और ऐसे उड़ी कि

आसमान को ही उसने

 अपनी धरती बना लिया

-0-

 

2 - स्त्री

 

तुम्हारे पास सपने थे

तुम्हारे पास इच्छाएँ थीं

उम्मीदें थीं

हौसला था

साहस था

पता नहीं कैसे तुमने

किसी और का 

अनुसरण स्वीकारा होगा

6 comments:

  1. बहुत सुंदर कविताऍं , हार्दिक शुभकामनाऍं।

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  2. बहुत सुंदर कविताएँ।
    आप दोनों को हार्दिक बधाई

    सादर

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  3. मेरी कविताओं को स्थान देने के लिए रामेश्वर काम्बोज हिमांशु जी का बहुत बहुत धन्यवाद🙏💕 साथ ही भीकम जी और रश्मि विभा जी का भी आभार जिन्होने समय देकर कविताओं को पढ़ा। और अमूल्य प्रतिक्रिया दी।

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  4. बहुत ही सुन्दर

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  5. भीतर कसक समेटे, बहुत सुंदर रचनाएँ!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  6. बहुत सुंदर कविताएँ...आप दोनों को हार्दिक बधाई।

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