अहसास की धूप- रश्मि विभा त्रिपाठी
आँखों के छज्जे पर
टहलता नहीं दिखा कभी
मन की कोठी का
मालिक
होठों की खिड़कियाँ खुलीं
तो भी ज्यों के त्यों
पड़े रहे उन पर
मौन के पर्दे
शब्दों की चिड़िया
उस खिड़की पर आई
व्यर्थ ही चहचहाई
मिटा न सूनापन
संवेदना के सूने कमरे की
बढ़ती उमस
कम नहीं कर पाई
संवाद की पुरवाई
बीते हुए
उस मिलन के मौसम के बाद
एकाकीपन की ठण्ड में
भावना के बंद द्वार के पीछे
आँगन में ठिठुरती
देह दासी
दे रही है
आँसुओं के जल से
अर्घ्य
उम्मीद के आसमान में
संवेदनहीनता के
बादलों की ओट में छिपे
आत्मा के सूर्य को,
करके प्रार्थना-
है कोहरा घना!
आकर्षण की अटारी से
नीचे उतरकर
अहसास की धूप का सुनहरा रंग
साँसों की दीवार पर
यदि थोड़ा- सा बिखर जाए
नेह की ऊष्मा से जीवन निखर जाए!
जोड़ों में दर्द से परेशान
रिश्ते को मिटामिन डी मिले
उसका चेहरा खिले!!
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मेरी कविता प्रकाशित करने हेतु हार्दिक आभार गुरुवर।
ReplyDeleteसादर
वाह अद्भुत एहसास को लफ़्ज़ दिए हैं। मुक्कमल।
ReplyDeleteवाह अद्भुत एहसास को लफ़्ज़ दिए हैं। मुक्कमल।
Deleteसुंदर अहसास को सँजोये कविता!
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
सुंदर भाव जगत को कितने मोहक रूपकों में बाँधा है। वाह रश्मि जी। बधाई 💐
ReplyDeleteआप सभी आत्मीय जन की टिप्पणी की हृदय तल से आभारी हूँ।
ReplyDeleteसादर