कृष्णा वर्मा
1-स्त्री
अधखुले दरवाज़े पर खड़ी स्त्री
केवल इंतज़ार ही नहीं करती
वह भरती है भीतर उजालों को
महसूसती है
स्वछंद उड़ती हवाओं के साथ
लहराकर अपना आँचल
करती है एहसास पवन की
उन्मुक्तता का
भूल जाती है उस पल
पाँव में पड़ी पाजेब और बिछुए
दहलीज़ के पार खड़ी स्त्री
हो जाती है तितली- सी
विचर कर क्यारी-क्यारी
भर लाती है सुवासित साँसें
पंछी- सी उड़कर छू आती है
अपने आसमानों का छोर
मन और हृदय करके एक साथ
बढ़ाती है अंत:करण
का विस्तार
आलोकित आह्लादित अंतर्मन से
मुड़कर दहलीज़ के इस पार
महकाती है दरो- दीवार
टाँककर आन्नदानुभूतियाँ।
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2-संकल्प
राह में रोड़े बिछाए
तो किसी ने काँच की किरचें
किसी ने क्रोध दिलाकर
कोशिश की लहू तपाने की
कोई जुटा रहा
मेरे मन को बदगुमान करने को
तो कोई रिश्तों की परिभाषा
उलटने की कोशिशों में
कुछ मेरी आँखों में सागर उतारने को
करते रहे भगीरथ प्रयास
मेरी दृड़ता की ढिठाई ने
अपनी आँखों के आसपास
बाँध लिया घोड़े की भाँति पट्टा
और मेरा लक्ष्य
बनाने लगा पहाड़ में रास्ता
मेरा संकल्प
बिना कोई परवाह किए
फिसलन भरी राहों पर
बढ़ाने लगा क़दम और
मिलती गईं राह में कई नेक आत्माएँ
जो बनीं मेरे एकाकीपन की सराय
जिनकी आँखों में जलते
अपनापे के चिराग़ों ने कर दिया रोशन
मेरी धुँधली राहों को।
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3-एहसास
मिल जाया कर
यूँही कभी-कभार
सरे -राह किसी मोड़ पर
तुझे देखकर जीवित होने का
भरम बना रहता है
देख लूँ तुझे तो
पुरसुकून हो जाती है
मेरी परेशान सोच
दिन हो जाते हैं ख़ुशनुमा
और रातें सुखवंत
मिले जो तेरी एक झलक
तो मुड़ आते हैं फिर से
वो बीते संदली पल
ख़ूबसूरत शामें
शाम के धुँधलके में
बुझते सूरज की नरम लाली
और लाली में दमकते हम
तेरे लहराते दुपट्टे को देख
याद आती है मिन्नी-मिन्नी महकती रुत
रुत की अँगड़ाइयाँ
कोमल किसलय
कलियों कीचटकन
भौरों की दीवानगी
रूह को तर करते
महकी हवाओं के झकोरे
और क़ुदरत को सराहते हम
मिल जाया कर ना यूँही कभी-कभी
तुझे देखे से खिल जाता है
मन का मौसम
निगाहें करती है सौ-सौ बार
आँखों का शुक्रिया
नींद में डूबें आँखें तो
तैर आते हैं तेरे स्वप्न
रंग भरने लगती हैं उनमें
कल्पनाओं की अप्सराएँ
उँगली बनके कलम
उगाने लगती है शब्द
शब्द-सृजन का अखंड प्रवाह
रंग देता है मन के पन्ने
बेतार साज़ और अनजाने सुरों से
गूँज उठता है अनहद नाद
खड़े पानियों में आ जाती है रवानी
रोशनी से भर जाता हूँ
सब धुला-धुला निखरा-निखरा नज़र आता है
आ जाया कर अच्छा लगता है
कभी-कभी मिल जाया कर तू
किसी मोड़ पर किसी राह पर।
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मन को सुकून देतीं बेहतरीन कविताएँ। हार्दिक बधाई आपको । सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteसभी रचनाएँ सुंदर, हार्दिक बधाई कृष्णा जी!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविताऍं , हार्दिक शुभकामनाऍं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचनाएँ।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई आदरणीया कृष्णा दीदी को
सादर
वाह्ह... अति सुंदर अर्थपूर्ण.. रचनाएँ... 🌹🙏🏻
ReplyDeleteसभी रचनायें ख़ूबसूरत अहसास दिलाती हैं बधाई हो। सविता अग्रवाल “सवि”
ReplyDeleteसभी कविताएँ बहुत सुंदर। हार्दिक बधाई कृष्णा जी।
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