विजय जोशी
पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल
शिक्षा एक तपस्या है। साध्य है, साधन नहीं। इसे पूरे मन से समर्पण के साथ जीने का मानस ही मस्तिष्क की
स्वस्थता का सूचकांक है। इस क्षेत्र में भोंडे प्रदर्शन या समय की बर्बादी का कोई स्थान नहीं। आवश्यकता है, तो हर पल के सार्थक उपयोग की। दुर्भाग्य से हमारे यहाँ छात्रों के आधे दिन तो कालेज की छुट्टियों, परीक्षाओं एवं समारोहों में ही गुजर जाते हैं। पश्चिम के सर्वथा विपरीत, जहाँ मुझे अमेरिका के कोलंबिया स्थित एक विश्वविद्यालय –‘यूनिवर्सिटी ऑफ मिसौरी’ के दीक्षांत समारोह में सम्मिलित होने का अवसर प्राप्त हुआ। एक अविस्मरणीय अनुभव जो इस प्रकार था। 1-आयोजन संध्या 6 बजे आयोजित किया गया था। कारण, यह कि दिन में सब अपने निर्धारित कार्य करते हैं; ताकि आम जन को कोई दिक्कत न हो। समारोह को दैनिक सामान्य कार्य- प्रणाली में बाधक बनना अस्वीकार्य है।
2- कार्यक्रम का समय प्रबंधन
अद्भुत। पहले 15 मिनट सोशलाइज़िंग के (6.15 – 6.30), फिर डिनर (6.30 – 7.00) एवं तत्पश्चात् समारोह का शुभारंभ।
3-डिनर सर्विस अनुपम। पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर सबने एक लाइन में लगाकर अपनी प्लेट सजाई। कोई वी आई
पी नहीं। सब एक समान।
4-भोजन की प्लेट लेकर जब सजी सजाई
टेबिल पर पहुँचे, तो पहले से कार्यक्रम
के विवरण का एक ब्रोशर रखा पाया, जिसमें उपाधि प्राप्तकर्ताओं के
साथ उनके गाइड के नाम अंकित थे।
5-न कोई मुख्य अतिथि और न ही वी
आई पी की फौज। केवल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, छात्र व
स्टाफ।
6- मंच जमीन से लगभग दो फीट ऊँचा, सुरुचिपूर्ण तथा अनावश्यक सजावट से रहित एक
पोडियम सहित। मंच पर कोई कुर्सी टेबल नहीं।
7- कोरी भाषणबाजी से परहेज। संचालनकर्ता महिला द्वारा पूरी तरह प्रोफेशनल संचालन, अनावश्यक अतिरंजना से परे।
8- हर शोधार्थी को गाइड से
साथ मंच पर आमंत्रित करते हुए उनकी उपलब्धि की प्रस्तुति और
उपाधि प्रदान करने की रस्म।
9- सभागार में उपस्थित
अभिभावकों एवं जन समूह द्वारा खड़े होकर करतल ध्वनि से अभिनंदन।
10-कार्यक्रम के दौरान वातावरण
पूरी तरह दोस्ताना एवं अनौपचारिक। लोग बेहद सज्जन, सभ्य
एवं सौम्य।
11 कार्यक्रम तयशुदा समय, यानी ठीक 9.15 पर समाप्त। सब आमंत्रित अतिथियों द्वारा बगैर किसी धका-मुक्की के अपने
वाहनों द्वारा खुद अपनी कार चलाकर घर के लिए प्रस्थान, ताकि अगली सुबह समय से अपने कार्यस्थल पर पहुँच सकें।
अब इसकी तुलना कीजिए अपने यहाँ से। हफ्तों पूर्व सब
काम बंद, भव्य मंच, अनावश्यक
खर्च। पूरा सम्मान नेता, मंत्री या अफसरों को, शोधार्थी दोयम दर्जे पर। शिक्षा जैसी पावन तथा पवित्र हमारी सारी शिक्षा
व्यवस्था तो चाटुकारिता की बंधक। एक दौर के गुरुकुल सदृश्य नई पीढ़ी को गढ़ने का
माद्दा रखने वाले सम्माननीय शिक्षक तो अब व्यक्तिगत स्वार्थ के परिप्रेक्ष्य में खुद बन गए हैं नेता और
ब्यूरोक्रेसी के चरणदास। सब कुछ राग दरबारी संस्कृति को समर्पित। काश अब हम भी कुछ सीख सकें। रामायण काल के उस समय की
कल्पना को फिर साकार कर सकने का सपना सँजो सकें, जब होता था ऐसे :
गुरु गृह गए पढ़न रघुराई
अल्प काल विद्या सब पाई ।
-0-
आपके स्नेह से अभिभूत हूं मैं। इस दौर समाज में आप जैसी बहुत ही कम शख्सियतें पाई जाती हैं, जो अपना श्रेष्ठ दूसरों को निखारने में समर्पित कर दें। आभार बहुत ही छोटा शब्द होगा कृतज्ञता ज्ञापन हेतु। फिर भी सादर साभार, आपका आभार।
ReplyDelete- अब मोहि भा भरोस हनुमंता
- बिनु हरि कृपा मिलहि नहि संता
आदर सहित : विजय जोशी (9826042641)
समय का मूल्य समझने वाले ही सफलता प्राप्त करते हैंl यह सन्देश जोशी जी सहज रूप से इस उद्धरण के माध्यम से बड़ी खूबसूरती के साथ दिया हैl लेखक का अभिनन्दन!
ReplyDeleteआदरणीय, बिल्कुल सही कहा आपने। समय तो अनमोल है। हार्दिक आभार। सादर
DeleteTime is precious......
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Delete🙏🙏
DeleteDear Bharti, Thanks very very much. Regards
Deleteपिताश्री हमेशा कि तरह ये लेख भी अप्रतिम है और बहुत कुछ सीखाता है। Pitashree aall your writeups are valuable and priceless. आदरणीय पिताश्री को सादर प्रणाम व चरण स्पर्श 🙏
ReplyDeleteप्रिय हेमंत, हार्दिक आभार। सस्नेह
Deleteहर जगह अनुशासन की मिसाल, चरण पादुका पुजक से दुर ,साहित्यिक कृति कीकी अदभुत आडंबर विहीन पुजन,🌷🌹💐🙏
ReplyDeleteभाई रवींद्र, हार्दिक आभार सहित सादर
Deleteसादर अभिवादन महोदय👏
Deleteअप्रतिम, अद्भुत । हमेशा की तरह मन को झकझोरता शिक्षाप्रद आलेख। काश पढ़ने वाले कुछ सीख सकें। हार्दिक बधाई । सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteआदरणीया, आप तो बहुत विद्वान हैं। आपका पढ़ना ही प्रयास को सफल बना देता है। सो हार्दिक आभार सहित सादर
DeleteIn India we have scant regard for time. The long winding meetings are proof of that or people waiting in Banks or any such place. Lot to learn from West.A good article.
ReplyDeleteS N Roy
Res. Sir, Thanks very very much for your encouragement. Kind regards.
Deleteऐसे सार्थक कार्यक्रमों से हर किसी को प्रेरणा लेनी चाहिए। बहुत बधाई
ReplyDeleteदिखावा व आडम्बर की दुनिया हो गई है आदरणीय सर.. आपने अनुपम उदाहरण से सादगीपूर्ण व अनुशासित समाज का उदाहरण दिया जो आज विरले पाए जाते है.. आपके सन्देश हेतु साधूवाद सर 🌹🌹
ReplyDeleteवैसे दीक्षान्त शब्द से भी मुझे समस्या है.. क्योंकि दीक्षा का कभी अंत हो सकता है क्या? कोई और शब्द ज्यादा न्यायोचित होता 🌹🙏
प्रिय रजनीकांत, बहुत सुंदर बात कही है। दीक्षा का अंत कैसे हो सकता है। अद्भुत। हार्दिक आभार। सस्नेह
Deleteनमस्ते , मुझे भी बहुत बार यहाँ के समारोहों में जाने का अवसर मिला । आडम्बर रहित आयोजनों ने बहुत प्रभावित किया। आशा है इस प्रेरक प्रसंग के माध्यम से भारतीय शिक्षित होंगे । साझा करने के लिये आभार ।
ReplyDeleteसर,
ReplyDeleteअति उत्तम लेख। इसी से प्रेरणा लेकर हमे भी, सादगी से सभी समारोह करना चाहिए।
प्रिय महेश, 21 जून आयोजन तो हमारा सादगी का पर्व है जिसमें आप सहभागी हैं। हार्दिक आभार। सस्नेह
Deleteअति उत्तम और आनंददायक अनुभूति हुई आपका ये आलेख पढ़कर , शायद इसके मूल
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ReplyDeleteअति उत्तम और आनंददायक अनुभूति हुई आपका यह आलेख पढ़कर, व्यक्तिगत तौर पर मुझे ऐसा लगता है की हमारे यहां के और वहां के तौर तरीको में जो अंतर है उसका मूल कारण हमारे यहां के लोगो की अपरिपक्वता है और यह जो अपरिक्पक्वता है वो आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक अर्थात सभी प्रकार की है और अनपढ़, बेरोजगार से लेकर पढ़े लिखे तथा उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों तक में है ।
ReplyDeleteआदरणीय, सियासत और आडंबर दोनों सबसे बड़ी समस्या हैं इस दौर की। शिक्षक ने तो खुद अपने सम्मान को निलाम कर दिया है। हार्दिक आभार। सादर
ReplyDeleteप्रिय बंधु, हार्दिक आभार। सादर
ReplyDeleteप्रिय शरद, हमारे और उनके आचरण में जमीन आसमान का फ़र्क है। उनका आचरण अद्भुत है। सरल एवं सम्मानजनक। हमें कई साल लगेंगे उन जैसा बनने में। हार्दिक आभार सहित सस्नेह
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार बंधु। सादर
ReplyDeleteहमारे देश में छोटे से छोटे आयोजन में भी आडम्बर और अनावश्यक समय की बर्बादी होती है. हम कुछ मामलों में तो विदेश की नक़ल करते हैं लेकिन अनुशासन और व्यवस्था में नहीं. निःसंदेह हमें सीखना चाहिए. हार्दिक आभार.
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