मंथन
शशि पाधा
अपना-अपना भाग्य लिखाए
धरती पर हैं आते लोग
विधना जो भी संग बँधाए
गठरी भर- भर लाते लोग।
किस स्याही से खींची उसने
हाथों की अनमिट रेखाएँ
वेद_ पुराण पढ़े हर कोई
भाग्य नहीं पढ़ पाते लोग।
बीते कल की पीड़ा बाँधे
‘आज’ तो जी भर जी न पाए
भावी की चिंता में डूबे
जीवन-स्वर्ण लुटाते लोग।
रिश्तों
के इस मोहजाल में
मन पंछी व्याकुल- सा रहता
जग जंजाल छोड़के सारा
मुक्त नहीं हो पाते लोग।
कौन है अपना, कौन पराया
किसने कैसी रीत निभाई
मन तराजू मन ही पलड़े
तोल- मोल कर जाते लोग।
सुंदर मन सुंदर यह जगति
सुंदर सृष्टि रूप-अनूप
मन दर्पण हो जिसका जैसा
वैसा चित्र बनाते लोग।
-0-
Email: shashipadha@gmail.com
वाह्ह्ह... बहुत ही सुंदर उत्कृष्ट भाव से भरी रचना 🌹🙏
ReplyDeleteवाह!!!बहुत सुन्दर। बधाई आपको।
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत, हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता। सच है भाग्य कोई नहीं बांच पाता।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर जीवन-दर्शन दर्शाती नविता
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना, हार्दिक बधाई आपको
ReplyDeleteजीवन के फलसफे को सुन्दर शब्दों में बयान करती उत्तम अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई प्रिय शशि जी ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कविता।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई आदरणीया शशि पाधा दीदी को
सादर
जीवन दर्शन का विश्लेषण करती बहुत सुंदर रचना। हार्दिक बधाई शशि जी। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteमेरी रचना को आप सब का स्नेह मिला , सहज साहित्य में स्थान मिला , आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteशशि पाधा
अहा ! सुंदर !
ReplyDeleteजीवन दर्शन को बयाँ करती गहरी पंक्तियाँ
बधाई आदरणीया
कितनी सुंदर आपकी रचना |पढकर मन को एक शांति मिली | हृदय स्पर्शी और बार -बार पढनेवाली ! बधाई ! श्याम हिन्दी चेतना
ReplyDelete\
बहुत सुन्दर. जीवन के सत्य का दर्शन. बहुत बधाई शशि जी.
ReplyDelete