विजय का नाद
सुरभि डागर
कितने बड़े योद्धा हो तुम
अर्जुन की भाँति
क्या सारथी भी माधव ही है
लड़ रहे हो बरसों से
अपनों के विरुद्ध ही
अदृश्य चक्र तुमको
विजय की ओर अग्रसर
कर रहा है।
विफल हो रहीं हैं मारण
क्रिया
और चूक रहे हैं विषैले वाण
ध्वस्त हो चले हैं सभी षड्यन्त्र
तुम खड़े हो अपने राज्य के समक्ष
हानि अधिक हुई; परन्तु
निःसंकोच तुम बढ़ते रहो
माना कठिन वक्त पर
डटे रहना हथियार लिये
आगे बढ़ते रहना।
शकुनि वार छुपके ही कराएगा
और तुम निकल जाना
लाक्षागृह से सकुशल
लगा लेंगे हृदय से गिरधारी
झलक उठेंगे उनके भी नयना
कसके पकड़ लेना बाँह गिरधारी की
वे नहीं सोएँगे तुम्हारे लिए रात भर
केशव को सौंप दो स्वयं को
और विजय का नाद सुनो ।
बहुत सुंदर कविता
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार
Deleteबहुत सुंदर... वाह्ह! उत्कृष्ट सृजन 🌹🙏
ReplyDeleteआपका हार्दिक धन्यवाद।
Deleteबहुत सुंदर। हार्दिक बधाई आपको।
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार 🙏
Deleteबहुत सुंदर... हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार 🙏
Deleteबहुत सुन्दर
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