सुकून
स्वाति शर्मा
सुकून की खातिर
घर से दूर आ गए
अपने छोड़े,
रातों के सपने छोड़े
जीवन में तन्हाई
गमों में गहराई,
ना खाने का होश
ना पीने की सुध
बस चलते जा रहे
पाई- पाई जोड़
रहे
दोस्ती टूटी
रिश्ते छूटे
बस इक सुकून की खातिर
सबसे दूर आ गए
सुकून की खातिर
घर से दूर आ गए।
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बहुत सुन्दर कविता, हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई।
भावपूर्ण कविता. बधाई स्वाति जी.
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता। बधाई स्वाति जी। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteसुंदर कविता !
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
सुंदर कविता, बधाई स्वाति जी!!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद।🙏🏻🙂
ReplyDelete~ स्वाति शर्मा
बहुत सुंदर
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण सृजन।
ReplyDeleteअनुभूति की सुंदर अभिव्यक्ति
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