हरसिंगार
सुरभि डागर
हरी-हरी डालियों पर
भरे हरसिंगार के फूलों से
वायु भी सुरभित हो
हृदय को स्पर्श कर
मन को सिंचित कर देती,
मानों रात ही महक उठी हो ।
सुवह की भोर में शाख से झरकर
बिखर जाते हैं धरा की गोद में,
जा पहुँचते हैं
किसी की पूजा की थाली में
हो जाते हैं महादेव पर
समर्पित
और पूर्ण हो जाती है
गंगाजल में विसर्जित होकर
हरसिगार की जीवन-यात्रा।
बस ये ही जीवन है ! ! !
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ReplyDeleteउम्दा रचना...हार्दिक बधाई सुरभि जी।
आपका बहुत बहुत आभार 🙏 मैम
ReplyDeleteआपकी रचना पढ़ने के बाद वाकई में दिल को सुकून मिलता है
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