पथ के साथी

Saturday, October 14, 2023

1377

 गाँव से ....

भीकम सिंह 

 


नीम के साये में 

सुस्ता रहा 

ईख की निराई करके 

एक बूढ़ा किसान 

खेत के किनारे 

उतरती संध्या को 

टकटकी बाँधे देख रहा 

होते हुए  रात।

 

एक नगर

खेत में घुसता हुआ 

बूढ़ा देखता है 

खेत को बिकता हुआ 

ईख के पौधों की 

जब सिसकियाँ 

कानों में लगी टकराने 

लगा बड़ा आघात

 

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7 comments:

  1. वाह! बहुत सुंदर। आप गाँव की रूह में उतर कर लिखते हैं! शुभकामनाएँ।

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  2. बहुत सुंदर। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर

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  3. हार्दिक बधाई भीकम जी। सविता अग्रवाल “सवि”

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  4. बहुत सुन्दर

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  5. अति सुन्दर। बधाई आपको

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  6. वाह! बहुत सुंदर...हार्दिक बधाई।

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  7. वाह! अतिसुन्दर!

    ~सादर
    अनिता ललित

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