1- हथकटी ठाकुर
छुट्टी वाले दिन
जब पतिदेव
हर घंटे दो घंटे बाद रह-रहकर बोलें-'तुम्हारे
हाथों की बनी हुई चाय पीने का मन कर रहा है'
'गरमागरम कॉफी पीने को जी मचल रहा है’
सच बता रहें हैं हम-
हमारी आत्मा
कह उठती है-
हे प्रभु!
हमें 'शोले पिक्चर' वाले 'ठाकुर साहब' क्यों
नहीं बना देते आप?
'हथकटी ठाकुर लिली की गुहार'
-0-
सुनो लड़कियो! शायरों से खुद को बचाकर रखना,
बहुत ही 'डेंजरस
प्रजाति' हैं- रे बाबा!
एक शायर साहब ने कहा है -
'चाँद शरमा जाएगा, चाँदनी रात में
यूँ ना जुल्फों को अपनी सँवारा करो'
हैं!
...
मतलब?
...
हम बेचारी हॉलोविन की डायन बनी फिरती रहें क्या!!
-0-
3- इज़हार-ए-ख़ौफ़
जैसे ही हमारे हाथ में ये पोछे वाला
डंडा-बाल्टी आता है, हमारे घर के वातावरण में एक ख़ौफ पसर जाता है,
और फिर बजता है, बैकग्राउंड में
स्पॉटीफाई (म्यूजिक ऐप) पर बारम्बार 'सुधा रघुनाथन'
की आवाज में-
'भो शम्भू
शिव शम्भू
स्वयं भो,'
ढिढिंग ढिढिंग मृदंगम् की जबरदस्त ऊर्जा से भरपूर स्वर – संगीत- लहरी पर एकदम तांडवीमुख मुद्रा लिये
पोंछा मारते हुए, हम! सामने कोई आ जाए, उस वक्त तो एक जोड़ी ज्वलंत दृष्टि से- ढाँय...
एकदम्म फायर!!
एक दिन बिचारे हमारे पतिदेव ने 21 वर्ष
बाद हमसे कबूला कि सुनो लिली, तुम्हारे इस अवतार को देखकर
हम डर के मारे काँप जाते हैं, भीतर
तक।
अरे बता नहीं सकते आप लोगों को, के हम केतना खुस हुए ये 'इजहारे- ख़ौफ' सुनकर
सच्ची!
तो बोलो-
भो शम्भो, शिव शम्भो, स्वयंभो
भो शम्भो, शिव शम्भो, स्वयंभो
गङ्गाधर शंकर करुणाकर मामव भवसागर तारक...।
-0-
बहुत बड़ा पहाड़- सा लक्ष्य साधने के लिए कभी-कभी मेहनत, लगन,
एकाग्रता, तत्परता, जैसे प्रेरणाप्रद, जोशीले, चॉकोलेटी मनोभावों के साथ कुछ 'कड़वे
करेले-दूजे नीम चढ़े 'जहर मनोभावों का सम्मिश्रण करना
परमावश्यक हो जाता है, जैसे- बेवजह पतिदेव से झगड़ लेना,
अपनी गलतियों का दोषारोपण उन पर लगाना, सामान्य
सी बातों का बतंगड़ बनाकर तू-तू, मैं-मैं का परिवेश
निर्मित करना। इससे होगा यह कि आप तिड़कती -भिड़कती उठेंगी क्रोध के आवेश में सिंक
में ढेर लगे बर्तन फटाफट निकल जाएँगे, उबलते गुबार में तन का सारा आलस्य रफूचक्कर हो जाएगा कुछ देर पहले तक
फैले घर के सारे कामों को निपटाने का पहाड़- सा लक्ष्य
झटपट निपट जाएगा।
रही बात पतिदेव के बिगड़े मिजाज ठीक करने की... एक कप गरम चाय /
कॉफी बनाइए
बेवजह झगड़े की वजह बताइए... अपनी गलतियों का दोषारोपण उन पर से
हटाइए और तनावपूर्ण स्थिति को नियंत्रण में लाइए।
( आवरण एवं सभी रेखाचित्र;सौरभ दास)
😂😂 ये भी खूब रही
ReplyDeleteधन्यवाद🙏
Deleteसादर धन्यवाद एवं आभार सर 'गपाष्टक' की रचनाओं को स्थान देने के लिए🙏
ReplyDeleteगजब, हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteअरे वाह ! बहुत बढ़िया .. ये चिकोटियाँ सच मे हँसी की चिकोटियाँ ही काटती हैं :-) बहुत बढ़िया प्रस्तुति लिली जी की। बधाई हो
ReplyDeleteमंजु मिश्रा
www.manukavya.wordpress.com
हार्दिक धन्यवाद मंजू जी🙏
Deleteवाह ! बहुत सुंदर 😀
ReplyDeleteधन्यवाद🙏
Deleteगुदगुदाती हुई चिकोटियाँ, और संग अति सुंदर चित्रकारी, बधाई लिली जी, सौरभ जी!
ReplyDeleteधन्यवाद प्रीति जी🙏
Deleteबहुत ही बढ़िया प्रस्तुति...बहुत बधाई।
ReplyDeleteधन्यवाद 🙏
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteधन्यवाद🙏
Deleteअद्भुत संरचना और कल्पना । जी भर कर हँसी आई । आभार ।
ReplyDeleteशशि पाधा
हार्दिक धन्यवाद शशि जी🙏
Deleteवाह!गुदगुदाती हुई चिकौटियाँ! बहुत सुन्दर। बधाई।
ReplyDeleteधन्यवाद🙏
Deleteलिली जी बहुत बढ़िया मज़ेदार चिकोटियाँ रची हैं साथ ही सौरभ जी की चित्रकारी का जवाब नहीं । मन गद गद हो गया। बधाई स्वीकारें। सविता अग्रवाल “ सवि”
ReplyDeleteसराहना हेतु धन्यवाद सविता अग्रवाल जी🙏
Deleteबहुत बढ़िया! अभिव्यक्ति का यह अनोखा रूप बहुत अच्छा लगा! चित्रकारी भी बहुत बढ़िया!
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
चेहरे पर मुस्कान लातीं बहुत सुंदर चिकोटियाँ। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteवाह आपने कितने सुंदर तरीके से जीवन के छोटे-छोटे पहलुओं को प्रस्तुत किया है।आपकी लेखनी को नमन।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteमज़ा आ गया !
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया चिकौटियाँ
बधाई आदरणीया