रश्मि विभा त्रिपाठी
खुद को मन ही मन
मैं
तुम्हारी सुहागन मान चुकी
हूँ
तुम मेरे जीवनसाथी हो
मुझको ये सपना
गढ़ने मत देना
देखना
मुझे
सूनी माँग
सूने हाथ
लिये
पहले से
विधवा के लिबास में ही
मेरे हाथों में
अपने नाम की मेहँदी का
रंग
चढ़ने मत देना
तुम्हारी अपनी एक अलग
ज़िन्दगी है
तुम अपनी जिन्दगी में
कोई खलल
मेरी वजह से
कभी पड़ने मत देना
फाड़ देना वो सारे के
सारे पन्ने
जिन पर
तुम्हारे नाम
मैंने
जो कुछ लिखा है
तुम्हारे नाम का कशीदा
मुझको तुम
औरों के सामने पढ़ने मत
देना
होठों पर ताले
पाँव में छाले
लिये
मैं चुपचाप चलूँगी
अकेली ही अपनी राह पर
तुम अपना हाथ
मुझको पकड़ने मत देना
मैं
तुम्हारी सोच में
तुम्हारे जितने पास
और खुद से जितनी दूर चली
आई हूँ
बस!!!
यहीं तक रखना मुझे
मुझे हद से आगे
अपने नजदीक अब बढ़ने मत
देना
मगर सुनो-
एक तुमसे ही
आबाद है मेरे खयाल की
दुनिया
तुमसे से ये आरजू है
कि मेरे खयाल की बसी-
बसाई दुनिया
उजड़ने मत देना।
-0-
भावपूर्ण कविता प्रिय रश्मि विभा!
ReplyDelete~सस्नेह
अनिता ललित
सुंदर-भावपूर्ण कविता।बधाई रश्मि जी।
ReplyDeleteप्रेम पगी सुंदर कविता। बधाई रश्मि जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण कविता। हार्दिक बधाई सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDelete