रश्मि विभा त्रिपाठी
इतने अरसे में पहली बार
मुझे उसकी बहुत याद आई
आज मैं उसके लिए
पहली बार हुड़की
मैं आसमान से लुढ़की
जिसने सात फेरे लिये
जिसने जलाए दिए
एक नई जिन्दगी
रोशन करने को
उसी दीप की लौ में
मैं अपनी रौ में
चलती जाती
उसके पीछे-पीछे
ज़िन्दगी के रास्ते पर
मायके की मर्यादा
सर पर लादे
वहीं पर मेरी उम्र ढलती
ससुराल से मेरी अर्थी निकलती
मगर
उसने त्याग दिया मुझे
सीता की तरह
क्या वो राम था?
नहीं!
वो मेरी कहानी का
बुरा अंजाम था
फिर भी
मेरे नाम के संग उसका नाम था
कि मैं अकेली नहीं
उसे पता था
कि जब उसका हाथ छूटेगा
तो तमाम लोग
तपाक से
गले मिलने को लपकेंगे
अकेली स्त्री को देखकर
पलक न झपकेंगे
क्या वो कर सकेंगे
उसकी कमी पूरी?
नहीँ
आज मैं खुद ही
नापना चाहती हूँ
उसके मेरे बीच की दूरी
क्योंकि
वो मेरी माँग का सिंदूर था
वो मेरी चमक-दमक
वो मेरा नूर था
उसी से थे सोलह सिंगार
वही परमेश्वर था,
करता भव से पार
वो चूड़ियाँ वो बिन्दी
वो आलता
मन को बड़ा सालता
वो कैसा भी था
पापा ने चुना था
मेरी खुशहाल ज़िन्दगी का
सपना बुना था
करके कन्यादान
वो था मेरी गरिमा मेरा मान
आज सोचती हूँ
पापा का वो सपना पूर करूँ
जाऊँ उसी चौखट पर
वहीं मरूँ
उसके हाथों मरी
तो सुहागन मरने का
सुख पाऊँगी
रोज-रोज के मरने से तो
अच्छा है
एक बार में छूट जाऊँगी
एक छोड़ी हुई स्त्री पर
सब झपटना चाहते हैं
काश वो फिर आए
अपने खूँटे से मुझे फिर से बाँध दे
तो फिर कोई मुझे
घास में मैदान में चराने न ले जाए।
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2-मैं सूखी लकड़ी- सी
चिंगारियों की ज़द में थी मैं
और किसी ने हवा दे दी
मैं सूखी लकड़ी-सी
जल गई हूँ
गम की भारी
बारिश के आसार हैं
मैं बूँदा-बाँदी में ही
कागज- सी गल गई हूँ
जवानी के
रपटीले रास्ते पर
पाँव रखते ही फिसल गई हूँ
उसकी बाहों में
जाकर
उसके अहसास की आँच से
मैं मोम-सी पिघल गई हूँ
उसकी यादों ने
रुलाया जब-जब
उसके ख्वाबों से
बहल गई हूँ
वो एहतियातन
मुझसे बच निकला
उसके लिए
मैं इक हादसा थी
जो टल गई हूँ
अब न वो पहले-सा रहा
मेरा सबके आगे रोना
लोग कहते हैं
कि मैं बदल गई हूँ
उसके गले लगकर
उसके लम्स की ख़ुश्बू चुरा ली
मैं पहली बार
उससे चाल चल गई हूँ
कभी उसके लिए
सुबह का सूरज थी
आज शाम-सी ढल गई हूँ।
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3-सब्र टूट रहा है
अब सब्र टूट रहा है
ज़िन्दगी का जिन्दादिली से
दामन छूट रहा है
खून के रिश्तों का
यही मजमून
कि
जिन्हें खून से सींचा
पीते रहे वे खून
जिन्हें पूजा
उन्होंने ही लूटा
वे पत्थर थे
सर पटक- पटककर
मेरा माथा फूटा
गीत सारे खो गए
गम के हवाले हो गए
तकदीर के
सितारे सो गए
मेरे अपने ही
मेरी राह में काँटे बो गए
अब कहाँ
कोई भी सुर, साज है
तबीयत अब बड़ी नासाज है
बस
मेरा एक ही राज है
उसके बारे में तुम
भूलकर भी
किसी से कुछ न कहना
तुम्हें कसम है
कल मुझे कुछ हो जाए तो
चुप ही रहना
ये काम दुनिया पे छोड़ देना
मेरा दिल मत तोड़ देना
लोग कहेंगे
उसपे लानत थी
या वो बेकार औरत थी
या उसकी गलत सोहबत थी
कहने देना
सुनो
तुम ये सच न मान लेना
मेरी इतनी ही ज़िन्दगी थी
सोच लेना
कोई तकलीफ
कभी उसने नहीं दी
उसने तो हमेशा मुझको दुआ दी
जितनी खुशी थी
उसकी ही बदौलत थी
वो जो मेरी एकतरफ़ा मुहब्बत थी।
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4-जिस दिन तुमने
जिस दिन तुमने
मुझे
गले लगाया
मैंने
तुम्हारी धड़कन को
छुआ
उसी दिन
भाग्य उदय हुआ
तुम्हारा दिल
गंगा की धारा
धड़कन लहर सी
जब मुझे छूकर गुजरी
मेरी नासाज तबियत सुधरी
तुम्हारी बाहों के घेरे में
मुझे यूँ लगा
चाँद सितारे मिले
उजाले में अँधेरे में
तुम्हारा साथ मिल गया
तो एक जीवन नया
तुमने दिया
और तुमने
अपने स्पर्श से
मेरे रोम- रोम की
सिहरन को
अपने भीतर भर लिया
मेरा माथा चूमकर
हर शिकन मिटाकर
दिया
अपना चंदन सा अहसास
जिसमें खो गई हूँ
मैं विष से मुक्त हो गई हूँ
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5-लकड़ियाँ
बचपन में
व्याकरण की अशुद्धि के कारण
मैं कई मर्तबा
लड़कियों को लकड़ियाँ
बोल देती थी
फिर माँ समझाती -
लकड़ियाँ नहीं लड़कियाँ
बड़े होने पर
मुझे
वो बचपन की गलती
याद आई
तो
लगा
कितना सही बोलती थी मैं
लकड़ियाँ और लड़कियाँ
दोनों ही
सुलगती हैं
जलती हैं
राख होती हैं
एक घर के चूल्हे में
एक ज़िन्दगी की भट्ठी में
एक रोटी के लिए
एक बोटी के लिए
काश कोई तो इनको बुझा दे
कोई रास्ता सुझा दे।
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6-आत्मा से जुड़ी
जिस दिन मैं नहीं रहूँगी
तो मेरे न होने पर
तुम आँसू मत बहाना
जब तुम्हें पता चले
कि
मेरी साँस थम गई
मेरे होंठ जम गए
मेरे शब्द मौन हो गए
तुम मत रोना
मैं तुम्हारे लिए
इस आभासी दुनिया की
खोज नहीं थी
तुम थे मेरी अमृता
मैं तुम्हारी इमरोज़ नहीं थी
हाँ
जिस पल
तुमको
मुझे याद करते ही
तुम्हारे भीतर ऐसा लगे
कि कुछ फड़का है
दिल जोर से धड़का है
होंठ थरथरा गए
और तुमने मेरा नाम लेकर
चीखना चाहा
उस पल
कुछ मत करना
न घबराना, न डरना
बस
महसूस करना
क्योंकि
किसी को याद करते पल
तुम्हारे तन- बदन में
बिजली- सी कौंधी
हवा में तैरकर
तुम्हारे पास आई हो
उसकी यादों की
महक सौंधी
अचानक
एक बादल का टुकड़ा
तुम्हारी आँखों में बिन मौसम
बरस गया
मेरा नाम याद आते ही
अगर आत्मा में
कुछ पल को
कुछ फड़कता है
दिल जोर से धड़कता है
तो समझना
मैं तुम्हारे ही भीतर हूँ
तुम्हारी आत्मा से जुड़ी हुई
बेशक थीं
हमारी राहें मुड़ी हुई।
-0-
इन कविताओं में समाज मे नारी नियति की सहज अभिव्यक्ति है।हर कविता का एक-एक शब्द पीड़ा में भीगा हुआ है।संवेदना को झंकृत करती प्रभावी कविताएँ।
ReplyDeleteनारी की पीड़ा को अभिव्यक्त करतीं प्रभावशाली कविताएँ। बधाई रश्मि जी। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कविताएँ
ReplyDeleteबहुत मार्मिक
ReplyDeleteनिःशब्द करती सभी कविताएँ! सिर्फ़ एक आह! और वाह!
ReplyDelete~सस्नेह
अनिता ललित
बहुत सुन्दर कविताएँ , हार्दिक बधाई आपको।
ReplyDeleteमार्मिक कविताएँ... बधाई रश्मि जी।
ReplyDeleteइन कविताओं को पढ़ते-पढ़ते मन के साथ साथ आँखें भी भीग गई | हर कविता की पंक्तियाँ कितना दर्द समेटे हुए हैं, क्या कहूँ...?
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